श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 44 ☆
☆ कविता ☆ “किस्मत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
☆
नहीं हाथों में
तेरे हाथों की मेंहदी
मेरे हाथों की लकीरों ने
नक्शा कुछ ऐसा बनाया है
*
तुम्हें हारकर भी
खुदसे जंग जीते है
तुम्हारी मिट्टी खोकर भी
जमीं तुम्हारी जीते है
*
नहीं किस्मत में
तुम्हारी पलकों की छाव
मगर हमारे बाजुओं का कर्म
के तुम्हारी नज़र हमारी है
*
कर्म के होली में
हमनें तो रंग खेला है
रंगी किस्मत लाजवंती
देख इधरही रहीं है
☆
© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈