श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है डॉ. जवाहर कर्नावट जी द्वारा लिखित पुस्तक – “विदेश में हिंदी पत्रकारिता” पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 156 ☆

☆ “विदेश में हिंदी पत्रकारिता” – डॉ. जवाहर कर्नावट ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुस्तक चर्चा 

विदेश में हिंदी पत्रकारिता

जवाहर कर्नावट

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत

पहला संस्करण २०२४,

पृष्ठ ३००, मूल्य ४००रु

ISBN 978-93-5743-322-8

चर्चा … विवेक रंजन श्रीवास्तव

डॉ. जवाहर कर्नावट

मान्यता है कि हिंदी भाषा की उत्पत्ति लगभग 1200 ईसा पूर्व संस्कृत के विकास के साथ हुई थी। समय के साथ इसकी विभिन्न बोलियां विकसित हुईं, जिनमें आधुनिक हिंदी भी एक है। देवनागरी लिपि के उद्भव के साथ 1000 ई.पू. के आसपास हिंदी का लिखित रूप सामने आया। लगभग 260 मिलियन लोगों द्वारा हिंदी वैश्विक स्तर पर बोली जाती है। ऐसी भाषा की पत्रकारिता का इतिहास स्वाभाविक रूप से प्रचुर है। आंकड़ो के अनुसार हिन्दी दुनिया में चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में एक लोकप्रिय भाषा होने के साथ-साथ भारतीयों के वैश्विक विस्थापन के चलते यह अंतर्राष्ट्रीय रूप में भी महत्वपूर्ण भाषा बन गई है। समय के साथ हिंदी ने अंग्रेजी, फ़ारसी और अरबी सहित कई अन्य भाषाओं से कई शब्द समाहित कर लिए हैं। महात्मा गांधी ने कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना कोई भी राष्ट्र गूँगा हो जाता है। उन्होंने हिन्दी के विषय में कहा है कि “मैं हिंदी भाषा उसे कहता हूं जिसे उत्तर में हिंदू और मुसलमान बोलते हैं और देवनागरी या उर्दू में लिखते हैं। गांधीजी चाहते थे कि देश में बुनियादी शिक्षा से उच्च शिक्षा तक सब कुछ हिन्दी के माध्यम से हो। नागपुर में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मेलन जनवरी, 1975 में यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाए तथा एक अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना की जाय जिसका मुख्यालय वर्धा में हो। अगस्त, 1976 में मॉरीशस में आयोजित द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन में यह तय किया गया कि मॉरीशस में एक विश्व हिंदी केंद्र की स्थापना की जाए जो सारे विश्व में हिंदी की गतिविधियों का समन्वय कर सके। इसी प्रस्ताव के अनुरूप चौथे विश्व हिंदी सम्मेलन के बाद विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना मॉरीशस में हुई।

जवाहर कर्नावट की सद्यः प्रकाशित पुस्तक विदेश में हिंदी पत्रकारिता में कुल चार अध्यायों में क्षेत्र के अनुसार विभिन्न देशों में हिंदी पत्रकारिता का इतिहास समेटा गया है।

किताब के पहले ही अध्याय मारीशस में हिन्दी पत्रकारिता में कर्नावट जी लिखते हैं कि मारीशस में हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास ११२ वर्ष पुराना है। दरअसल गिरमिटिया देशों में हिन्दी पत्रकारिता का वैश्विक हिन्दी स्वरूप भक्ति मार्ग से प्रशस्त होता है, क्यों कि जब एक एग्रीमेंट के तहत हजारों की संख्या में भारतीय मजदूरों को विभिन्न औपनिवेशिक देशों में ले जाया गया तो उनके साथ गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरित मानस भी वहां पहुंची और इस तरह हिन्दी के वैश्वीकरण की यात्रा चल निकली। कर्नावट जी ने बड़े श्रम से व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास कर मारीशस, आफ्रीका, फिजी, सूरीनाम, गयाना, त्रिनिदाद टुबैगो आदि गिरमिटिया देशों में हिंदी पत्रकारिता की ऐतिहासिक यात्रा को संजोया है। उनका यह विशद कार्य भले ही क्रियेटिव राइटिंग की परिभाषा से परे है पर निश्चित ही यह मेरी जानकारी में पुस्तक रूप में संग्रहित विलक्षण प्रयास है।

वर्ष २०११ में पवन कुमार जैन की पुस्तक “विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता” शीर्षक से राधा पब्लिकेशन्स दिल्ली से प्रकाशित हुई थी, उसके उपरान्त इस विषय पर यह पहला इतना बड़ा समग्र प्रयास देखने में आया है, जिसके लिये जवाहर कर्नावट जी को हिन्दी जगत की अशेष बधाई जरूरी है।

मुझे अपने विदेश प्रवासों तथा सेवानिवृति के बाद बच्चों के साथ अमेरिका, यूके, दुबई में कई बार लंबे समय तक रहने के अवसर मिले, तब मैने अनुभव किया कि हिन्दी वैश्विक स्वरूप धारण कर चुकी है। कई बार प्रयोग के रूप में जान बूझकर मैने केवल हिन्दी के सहारे ही इन देशों में पब्लिक प्लेसेज पर अपने काम करने की सफल कोशिशें की हैं। यूं तो मुस्कान और इशारों की भाषा ही छोटे मोटे भाव संप्रेषण के लिये पर्याप्त होती है किन्तु मेरा अनुभव है कि हिन्दी की बालीवुड रोड सचमुच बहुत भव्य है। नयनाभिराम लोकेशन्स पर संगीत बद्ध हिन्दी फिल्मी गाने, मनोरंजक बाडी मूवमेंट्स के साथ डांस शायद सबसे लोकप्रिय मुफ्त ग्लोबल हिन्दी टीचर हैं। टेक्नालाजी के बढ़ते योगदान के संग जमीन से दस बारह किलोमीटर ऊपर हवाई जहाज में सीट के सामने लगे मानीटर पर सब टाईटिल के साथ ढ़ेर सारी लोकप्रिय हिन्दी फिल्में, और हिन्दी में खबरें भी मैंने देखी हैं। प्रस्तुत पुस्तक में जवाहर जी ने उत्तरी अमेरिका और आस्ट्रेलिया महाद्वीप के देशों में हिन्दी पत्रकारिता खण्ड में अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, और न्यूजीलैंड देशों के हिन्दी के प्रकाशनो को जुटाया है। उन पर कर्नावट जी की विशद टिप्पणियां और परिचयात्मक अन्वेषी व्याख्यायें महत्वपूर्ण दस्तावेजी करण हैं।

मेरे अभिमत में पिछली सदी में भारत से ब्रेन ड्रेन के दुष्परिणाम का सुपरिणाम विदेशों में हिन्दी का व्यापक विस्तार रहा है। जो भारतीय इंजीनियर्स, डाक्टर्स विदेश गये उनके परिवार जन भी कालांतर में विस्थापित हुये, उनमें से जिनकी साहित्यिक अभिरुचियां वहां प्रस्फुटित हुईं उन्होंने किसी हिन्दी पत्र पत्रिका का प्रकाशन विदेशी धरती से शुरु किया। उन छोटे बड़े बिखरे बिखरे प्रयासों को किताब की शक्ल में एकजाई रूप से प्रस्तुत करने का बड़ा काम जवाहर जी ने इस कृति में कर दिखाया है। यद्यपि यह भी कटु सत्य है कि विदेशों के प्रति एक अतिरिक्त लगाव वाले दृष्टिकोण की भारतीय मानसिकता के चलते विदेश से हुये किंचित छोटे तथा पत्रकारिता और साहित्य के गुणात्मक मापदण्डो पर बहुत खरे न होते हुये भी केवल विदेश से होने के कारण भारत में ऐसे लोगों की स्वीकार्यता अधिक रही है। विदेशों में अलग अलग स्थान से बाल साहित्य, विज्ञान साहित्य, कथा साहित्य, कविता, हिन्दी शिक्षण आदि आदि विधाओ पर अनेकों लोगों ने अनियतकालीन कई पत्र पत्रिकायें शुरू कीं जो, छपती और जल्दी ही बंद भी होती रहीं है। इस सबका लेखा जोखा करना इतना सरल नही था कि एक व्यक्ति केवल अपने स्तर पर यह सब कर सके। लेखक ने अपने संबंधो के माध्यम से यह काम कर दिखाया है। लेखक ने किताब के अंत में विविध देशों की पत्र पत्रिकायें उपलब्ध करवाने वाले महानुभावों तथा संस्थाओ की सूची भी दे कर अनुगृह व्यक्त किया है।

किताब के प्रत्येक चैप्टर्स के शीर्षक देश के नाम के साथ ” …. में हिंदी पत्रकारिता” हैं। इससे शीर्षको में एक रसता लगती है। यह भी ध्वनित होता है कि समय समय पर स्वतंत्र रूप से पत्रिकाओ के लिये लिखे गये लेखों को संग्रहित कर पुस्तक बनाई गई है। संपादित कर हर चैप्टर के कंटेंट के अनुरूप बेहतर शीर्षक दिये जाने चाहिये। आशा है कि किताब के अगले संस्करण में यह सरल वांछित सुधार किया जा सकेगा। उदाहरण के लिये अमेरिका में हिन्दी पत्रकारिता शीर्षक की जगह वहां के एक साप्ताहिक समाचार पत्र के आधार पर शीर्षक ” नमस्ते यू एस ए ” हो सकता है, जिसे अंदर लेख में स्पष्ट किया जा सकता है। इसी तरह न्यूजीलैंड में हिंदी पत्रकारिता शीर्षक की जगह ” हस्तलिखित रिपोर्टिंग से शुरुवात ” शीर्षक बेहतर हो सकता था। क्योंकि वहां द इंडियन टाईम्स में हस्तलिखित रिपोर्टो से हिन्दी पत्रकारिता का प्रारंभ हुआ था। मोटी शीट पर अलग से विभिन्न विदेशी पत्र पत्रिकाओ के चित्र छापे गये हैं, जिन्हें सहज ही संबंधित चैप्टर्स के साथ लगाया जाना चाहिये। पुस्तक में लेखक का परिचय भी दिया जाना चाहिये जिसका अभाव है। उल्लेखनीय है की कर्णावट जी को उनकी सतत हिंदी सेवाओ के लिए अनेकानेक सम्मान तथा विश्व हिंदी सम्मेलन में सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। यूरोप के महाद्वीप देशों में हिंदी पत्रकारिता के अंतर्गत ब्रिटेन, नीदरलैंड, जर्मनी, नार्वे, हंगरी और बुल्गारिया तथा रूस में हिंदी पत्रकारिता का वर्णन है। एशिया महाद्वीप के देशों में जापान, यू ए ई, कुवैत, कतर, चीन, तिब्बत, सिंगापुर, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, और नेपाल को लिया गया है। इस तरह हिन्दी पत्र पत्रिकाओ के परिचय पाते हुये पाठक विश्व भ्रमण पूरा कर डालता है।

मेरी दृष्टि में जवाहर जी का यह प्रयास प्रशंसनीय है, जिसके लिए हिन्दी जगत उनका आभारी है, विभिन्न छोटे बड़े देशों मे सौ से ज्यादा वर्षो में किए गए प्रिंट मीडिया के तथा अब ई पत्रिका सामग्री के तथ्य जुटाकर उन्हें किताब के रूप में ढालना कठिन काम था। निश्चित ही पत्रकारिता के युवा शोधार्थियों को यह किताब विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता की लम्बी यात्रा पर एकजाई प्रचुर सामग्री देती है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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