श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 130 – मनोज के दोहे… ☆
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उड़ी चिरैया प्राण की, तन है पड़ा निढाल।
रिश्ते-नाते रो रहे, आश्रित हैं बेहाल।।
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जीव धरा पर अवतरित, काम करें प्रत्येक ।
देख भाल करती सदा, धरती माता नेक।।
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गरमी से है तप रहा, धरती का हर छोर।
आशा से है देखती, बादल छाएँ घोर।।
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दिल में उठी दरार को, भरना मुश्किल काम।
ज्ञानी जन ही भर सकें, उनको सदा प्रणाम।।
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ग्रीष्म तपिश से झर रहे, वृक्षों के हर पात।
नव-पल्लव का आगमन, देता शुभ्र-प्रभात।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
8/5/2024
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