श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “नदियों में न पानी है…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #230 ☆
☆ नदियों में न पानी है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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नदियों में न पानी है
पूलों की जुबानी है
अपनी पीड़ाएँ ले कर चली
सिंधु प्रिय को सुनानी है।
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सिर्फ देना है जिसका धरम
तौल पैमाना कोई नहीं
कौन है देखने वाला ये
कब से नदिया ये सोई नहीं,
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खोज में अनवरत चल रही
राह दुर्गम अजानी है
पूलों की जुबानी है….।
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चाँद से सौम्य शीतल हुई
सूर्य के ताप की साधिका
स्वर लहर बाँसुरी कृष्ण की
प्रेम रस में पगी राधिका,
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साक्ष्य शुचिता के तटबंध ये
दिव्यता की कहानी है
पूलों की जुबानी है….।
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फर्क मन में कभी न किया
कौन छोटा, बड़ा कौन है
हो के समदर्शिता भाव से
खुद ही बँटती रही मौन ये,
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भेद पानी सिखाता नहीं
सीख सुंदर सुहानी है
पूलों की जुबानी है….।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈