श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – चिंताओं की गठरी बाँधे…” । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 131 – सजल – चिंताओं की गठरी बाँधे… ☆
(मुक्त दिवस पर मेरी ओर से एक नई सजल)
समांत : ओए
पदांत : —
मात्राभार : 16+10=26
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चिंताओं की गठरी बाँधे, जीवन भर ढोए।
स्वार्थी रिश्ते-नातों ने ही, पथ-काँटे बोए।।
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संसाधन के जोड़-तोड़ में, हाड़ सभी टूटे ।
एक लंगोटी रही हमारी, बाकी सब खोए।।
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मोटी-मोटी पढ़ी किताबें, काम नहीं आईं।
जाने-अनजाने में हमतो, आँख मींच सोए।।
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होती चिंता,चिता की तरह, समझाया मन को ।
उससे मुक्ति है, ना मिल सकी, हार मान रोए।।
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प्रारब्धों के मकड़ जाल में, उलझ गए हम सब।
पाप पुण्य के फेरे में पड़, पुण्य सभी धोए।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
30/5/24
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