प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “आदमी कितना भोला है, नादान है…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 180 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – आदमी कितना भोला है, नादान है… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

आदमी कितना भोला है, नादान है ।

कोरे सपनों से अपने परेशान है ।।

*

देखते सपने दिन रात उसके नयन सपनों में सदा रहता है अक्सर मगन ।

सपनों में खोया, खुद से पै अनजान है ।। १ ।।

*

सपने आते उसे, सपने भाते उसे किन्तु सपने ही अक्स रुलाते उसे ।

सिर्फ सपनों में जीना न आसान है ।। २ ।।

*

सपनों का बड़ा रंगीन संसार है इंद्रधनुषी है, लेकिन निराधार है ।

कड़ी धरती का कम उसको अनुमान है ।। ३ ।।

*

स्वप्न वे ही भले जो कि साकार हों ठोस जिनके कहीं कोई आधार हों ।

लगन से मन की, जिनकी कि पहचान है ।। ४ ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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