श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना ‘कुछ इस तरह ‘। आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकते हैं । )
☆ कुछ इस तरह ☆
तुम्हारे होने की तपिश
बन के सूरज की किरण
मेरे कांधों को सहलाती है
ऐसे जैसे दिसंबर के सर्द दिनों में
मैंने ओढ़ लिया हो तेरे नाम का
संदली दुशाला
जैसे धूप पार करती है
आसमान में बना अदृश्य पुल
बढ़ चलती है पूरब से पश्चिम की ओर
मैं भी बदलती हूँ अपना बाना
सिंदूरी से सुनहरा
फिर से वही सिंदूरी
इस तरह तय करते हैं मेरे दिन
भोर से साँझ का सफर
और बदलती जाती हैं तारीख़ें
बदलते हैं माह जनवरी से दिसंबर !
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र