श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है आपके द्वारा प्रो कम्मू खटिक जी द्वारा संपादित पुस्तक “मास्क के पीछे क्या है ?” (सामूहिक व्यंग्य संग्रह भाग १) पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 160 ☆

☆ “मास्क के पीछे क्या है ?” (सामूहिक व्यंग्य संग्रह भाग १) – संपादक – प्रो कम्मू खटिक ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुस्तक – मास्क के पीछे क्या है  (सामूहिक व्यंग्य संग्रह भाग १)

संपादक – प्रो कम्मू खटिक

प्रकाशक – सदीनामा प्रकाशन

संस्कारण – पहला संस्करण २०२३,

पृष्ठ – १९६

मूल्य – ३००रु

ISBN – 978-93-91058-31-9

चर्चा … विवेक रंजन श्रीवास्तव

हाल ही मास्क के पीछे क्या है? शीर्षक से प्रो कम्मू खटिक के संपादन में सामूहिक व्यंग्य संग्रह का पहला भाग प्रकाशित हुआ है, जिसमें ५६ समकालीन व्यंग्यकारों की रचनायें संकलित हैं। किताब सदीनामा प्रकाशन से छपी है। सदीनामा जितेंद्र जीतांशु जी के द्वारा संचालित एक बहुआयामी अद्भुत संस्था है जो प्रतिदिन साहित्यिक बुलेटिन प्रकाशित कर अपनी देश व्यापी पहचान बना चुकी है। साहित्य जगत प्रतिदिन इसकी साफ्ट कापी की प्रतीक्षा करता है। सदीनामा के स्त्री विमर्श और व्यंग्य के स्तंभो से प्रो कम्मू खटिक समर्पित भाव से जुड़ी हुई हैं। तार सप्तक संपादित संयुक्त संकलन साहित्य जगत में बहु चर्चित रहा है। सहयोगी अनेक संकलन अनेक विधाओ में आये हैं। मेरे संपादन में “मिली भगत” शीर्षक से वैश्विक स्तर पर पहला सामूहिक व्यंग्य संग्रह भी छपा था। “व्यंग्य विसंगतियो पर भाषाई प्रहार से समाज को सही राह पर चलाये रखने के लिये शब्दो के जरिये वर्षो से किये जा रहे प्रयास की एक सुस्थापित विधा है “।यद्यपि व्यंग्य  अभिव्यक्ति की शाश्वत विधा है, संस्कृत में भी व्यंग्य मिलता है, प्राचीन कवियो में कबीर की प्रायः रचनाओ में  व्यंग्य है, यह कटाक्ष  किसी का मजाक उड़ाने या उपहास करने के लिए नहीं, बल्कि विसंगतियों के परिष्कार के लिये लिखा जाता है। कबीर का व्यंग्य करुणा से उपजा है, अक्खड़ता उसकी ढाल है। हास्य और व्यंग्य में एक सूक्ष्म अंतर है, जहां हास्य लोगो को गुदगुदाकर छोड़ देता है वहीं व्यंग्य हमें सोचने पर विवश करता है। व्यंग्य के कटाक्ष पाठक को  तिलमिलाकर रख देते हैं। व्यंग्य लेखक के, संवेदनशील और करुण हृदय के असंतोष की प्रतिक्रिया के रूप में उत्पन्न होता है। शायद व्यंग्य, उन्ही तानो और कटाक्ष का  साहित्यिक रचना स्वरूप है, जिसके प्रयोग से सदियो से सासें नई बहू को अपने घर परिवार के संस्कार और नियम कायदे सिखाती आई हैं और नई नवेली बहू को अपने परिवार में स्थाई रूप से घुल मिल जाने के हित चिंतन के लिये तात्कालिक रूप से बहू की नजरो में स्वयं बुरी कहलाने के लिये भी तैयार रहती हैं। कालेज में होने वाले सकारात्मक मिलन समारोह जिनमें नये छात्रो का पुराने छात्रो द्वारा परिचय लिया जाता है, भी कुछ कुछ व्यंग्य, छींटाकशी, हास्य के पुट से जन्मी मिली जुली भावना से नये छात्रो की झिझक मिटाने की परिपाटी रही है और जिसका विकृत रूप अब रेगिंग बन गया है।

प्रायः अनेक समसामयिक विषयो पर लिखे गये व्यंग्य लेख अल्प जीवी होते हैं, क्योकि किसी  घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में लिखा गया व्यंग्य, अखबार में फटाफट छपता है, पाठक को प्रभावित करता है, गुदगुदाता है, थोड़ा हंसाता है, कुछ सोचने पर विवश करता है, जिस पर व्यंग्य किया जाता है वह थोड़ा कसमसाता है पर अपने बचाव के लिये वह कोई अच्छा सा बहाना या किसी भारी भरकम शब्द का घूंघट गढ़ ही लेता है। जैसे प्रायः नेता जी आत्मा की आवाज से किया गया कार्य या व्यापक जन कल्याण में लिया गया निर्णय बताकर अपने काले को सफेद बताने के यत्न करते दिखते हैं। अखबार के साथ ही व्यंग्य  भी रद्दी में बदल जाता है।उस पर पुरानेपन की छाप लग जाती है। किन्तु पुस्तक के रूप में व्यंग्य संग्रह के लिये  अनिवार्यता यह होती है कि विषय ऐसे हों जिनका महत्व शाश्वत न भी हो तो अपेक्षाकृत दीर्घकालिक हो। मास्क के पीछे क्या है ? अनेक व्यंग्यकारो की करिश्माई कलम का ऐसा ही कमाल है।

संग्रह में लेख के साथ व्यंग्य चित्र भी प्रकाशित  हैं।

इंदिरा किसलय (नागपुर), डॉ. मधुकर राव लारोकर (नागपुर), प्रभात गोस्वामी (जयपुर), डॉ. सुधांशु कुमार (बिहार), सुनील सक्सेना (भोपाल), गीता दीक्षित (मध्य प्रदेश), परमानंद भार्गव (उज्जैन), डॉ. अरविंद शर्मा (जयपुर). स्वाति ‘सरु’ जैसलमेरिया (जोधपुर), रीता तिवारी (नागपुर), टीकाराम साहू ‘आजाद’ (नागपुर), सतीश लाखोटिया (नागपुर). राकेश सोहम (जबलपुर), राकेश अचल (ग्वालियर), संजय बर्वे (नागपुर), डॉ. रश्मि चौधरी (ग्वालियर), निवेदिता दिनकर (आगरा), राजेंद्र नागर निरंतर, श्रीलाल शुक्ल (अलीगढ़), डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’ (दिल्ली), लालित्य ललित (दिल्ली). कुंदन सिंह परिहार (जबलपुर), राजशेखर चौबे (रायपुर), डॉ. महेंद्र कुमार ठाकुर (रायपुर), अखतर अली (रायपुर), मुकेश नेमा (भोपाल). वेद माथुर (अलवर), घनश्याम अग्रवाल (अकोला), कामता प्रसाद सिंह ‘काम’, डॉ. नीरज दइया (बीकानेर), मुश्ताक अहमद युसुफी, शरद जोशी, सुरेश सौरभ (लखीमपुर, खीरी), डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ (हैदराबाद), भूपेंद्र भारतीय (देवास), राजेंद्र त्यागौ (मेरठ), वीरेंद्र सरल (छत्तीसगढ़), प्रभाशंकर उपाध्याय (सवाई माधोपुर), सुनीता महेश मल्ल (महाराष्ट्र), रंजना शर्मा (कोलकाता), डॉ. हरीश कुमार सिंह (उज्जैन), परवेश जैन (लखनऊ), श्री नारायण चतुर्वेदी (इटावा, यूपी), अनुराग बाजपेयी (जयपुर), डॉ. देवेंद्र जोशी (उज्जैन), अनीता रश्मि (रांची), संसार चंद्र, प्रेम जनमेजय (दिल्ली), पप्पू कुमार रजक (नैहाटी ) की रचनाओ का चयन भाग एक में संकलित करने के लिये संपादक ने किया है। शायद अगले भागों में और ज्यादा महत्वपूर्ण समकालीन लेखन सामने आये। सामूहिक संग्रहो की पठनीयता और चर्चा अधिक तथा दीर्घजीवी होती है, क्योंकि प्रत्येक सहभागी लेखक किताब को अपनी ही पुस्तक की तरह प्रमोट करता है। सभी परस्पर एक दूसरे की रचनाएं पढ़ते ही हैं। गिरिराज शरण के संपादन में 2009 में एक राष्ट्रीय स्तर का सामूहिक संग्रह पोलिस व्यवस्था पर केंद्रित छपा था। अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक व्यंग्य संकलन “२१ वीं सदी के श्रेष्ठ २५१ व्यंग्यकार ” भी हाल ही छप चुका है।इन संग्रहों में सहभागी रचनाकारों ने अपने अपने विषयों पर रचनाएं लिखी हैं। विषय केंद्रित संग्रह भी आ चुके हैं। ऐसा ही एक सामूहिक संग्रह थाने थाने व्यंग्य शीर्षक हरीश कुमार सिंह और नीरज सुधांशु के संपादन में छपा था। बहरहाल मास्क के पीछे क्या है ? (सामूहिक व्यंग्य संग्रह भाग १) प्रो कम्मू खटिक के संपादन में सदीनामा प्रकाशन के बेनर से एक और सामूहिक अच्छा प्रयास है, जिसकी सफलता, व्यापक पठनीयता हेतु मेरी शुभकामनायें हैं। खरीदिये और पढ़िये, प्रतिक्रिया दीजीये, लेखक को प्रतिक्रियाओ से बड़ा संबल मिलता है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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