श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “सुषुम सेतु पर खड़ी…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 201 ☆ सुषुम सेतु पर खड़ी… ☆
अहम,वहम, सहम, रहम और हम के बीच में उलझा हुआ इंसान सही गलत के बीच अंतर को अनदेखा करता है। सभी का मूल्यांकन एक न एक दिन अवश्य होता है, कोई देखे या न देखे हमें सत्य के मार्ग का चयन करना चाहिए। अपने तय किए गए रास्ते पर चलते हुए मंजिल की ओर जाना आसान होता है। अक्सर देखने में आता है कि बच्चे डिजिटल दुनिया से सब कुछ सीखने का प्रयास करते हैं। यहाँ उन्हें एक क्लिक पर बिना रोकटोक, बिना किचकिच प्रश्नों के उत्तर आसानी से मिलते हैं। पर माता- पिता की सशंकित नजर हमेशा घबराती है। बच्चों के भटकने का डर स्वाभाविक है। लगभग सभी माँ अपने बच्चे से कहती हुई मिलेंगी…
कितनी बार कहा कि इस आकर्षण से निकलो ये तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेगा, इस इंटरनेट की चमक – दमक भरी दुनिया से सिवा धोखे के कुछ नहीं मिलने वाला विनीता ने अपनी बेटी से कहा।
इस पर उसकी बेटी नैना ने कहा माँ ऐसी बात नहीं है। जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही इस डिजिटल दुनिया से लाभ और हानि दोनों हैं। आज के समय में केवल किताबी ज्ञान से काम चलने वाला नहीं है, हमें समय के साथ तेजी से भागना होगा और उपयोगी व अनुपयोगी वस्तुओं के बीच अंतर भी सीखना होगा।
विनीता ने धीरे से सहमति की मुद्रा में सिर हिलाते हुए कहा वो तो ठीक है बेटा पर माँ का मन है हमेशा इसी चिन्ता में लगा रहता है कि कहीं तुम भटक न जाओ। अच्छी आदतों को सीखने में वक्त लगता है पर बुरी आदतों का मोहजाल ऐसा भयानक होता है कि उसकी गिरफ्त में कोई कब आ जाए कहा नहीं जा सकता।
नैना ने विनीता की आँखों में झाँकते हुए कहा आप की बात एकदम सही है, जब आप मेरे साथ साये की तरह हो तो मुझे घबराने की कोई जरुरत ही नहीं है जहाँ भी ऐसा लगे कि मैं अपने लक्ष्य से भटक रहीं हूँ तो अवश्य टोक दीजियेगा।
हाँ, ये तो है बेटा, जब लक्ष्य निर्धारित हो और उसे पाने के लिए परिश्रम की राह चुन ली गयी हो तो भटकने का खतरा बहुत कम हो जाता है, तथा व्यक्ति अनावश्यक के आकर्षण से भी स्वतः बच जाता है।आज आवश्यकता है सजग रहने की तो जागिए और जगाइए साथ ही डिजिटल दुनिया की ओर कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़िए।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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