प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – “क्या भरोसा जिंदगी का !” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा # 184 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – क्या भरोसा जिंदगी का ! ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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क्या भरोसा जिंदगी का, बुलबुला है नीर का
पेड़ अधउखड़ी जड़ों का ज्यों नदी के तीर का ।
कभी आँधी की घड़ी में जो खड़ा फूला-फला
वही वर्षा की झड़ी में गिर पड़ा औं’ बह चला ।
ज्यों तरल आंसू नयन का विवश मन की पीर का ।।१।।
कभी बासंती पवन ने प्यार से हुलसा दिया
कभी झंझा के झकोरों ने जिसे झुलसा दिया ।
नियति जिसकी, ज्यों कोई बंदी बँधा जंजीर का ।।२।।
चार दिन के लिए जो संसार में मेहमान है
व्यस्तता में आज की जिसको न. कल का ध्यान है ।
साथ भी जिसको मिला तो नाशवान शरीर का ।।३।।
एक मिट्टी का खिलौना डर जिसे आघात का
ताप का भी, शीत का भी, वात का, बरसात का ।
ज्ञान कुछ जिसको न अपनी ही सही तासीर का ।।४।।
नहीं कोई अंदाज जिसको स्वतः अपनी राह का
पर न कोई अंत जिसकी चाह औ’ परवाह का ।
भटकना जिसको जगत में सदा एक फकीर सा ।।५।।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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