स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – नया शब्द संदर्भ…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 198 – नया शब्द संदर्भ…
(काव्य-संग्रह ‘संभावना की फसल’ से)
शायद, शब्दावलियों को
पीलिया हो गया है।
शब्दों का वर्चस्व
जाने कहाँ खो गया है!
लगता है
बुरे माहौल ने
शब्दों की आदत बिगड़ दी है –
अब अच्छे नहीं हैं उनके लच्छन।
अब नहीं बना पाएंगे
शब्दों के महल
मैं, भवानी मिश्र या कि बच्चन।
हाय !
कैसा हो गया है
इस दुनिया का चलन,
वो चल ही नहीं पाता
कि जो नहीं है बदचलन ।
सुना है –
दक्षिण अफ्रीका और वियतनाम में
फरिश्तों के स्कूल खुल गए हैं
सुना है –
पड़ोसी देशों के कुछ आदमी (?)
शब्दावलियों का सतीत्व भंग करने पर
तुल गए हैं।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈