श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 92 ☆ देश-परदेश – Wedding/ Marriage ☆ श्री राकेश कुमार ☆
सांयकालीन फुरसतिया संघ उद्यान सभा में आज इस विषय को लेकर गहन चिंतन किया गया था।
चर्चा का आगाज़ तो “खरबपति विवाह” से हुआ।भानुमति के पिटारे के समान कभी ना खत्म होने वाले विवाह से ही होना था।हमारे जैसे लोग जो किसी भी विवाह में जाने के लिए हमेशा लालियत रहते हैं, कुछ नाराज़ अवश्य प्रतीत हुए।
पंद्रह जुलाई को post wedding कार्यक्रम आयोजित किया गया है।ये कार्यक्रम अधिकतर उन लोगों के लिए होता है, जो विवाह के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जी जान से महीनों/वषों से लगे हुए थे।
इसको कृतज्ञता का प्रतीक मान सकते हैं। कॉरपोरेट कल्चर में भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। पुराने समय में विवाह आयोजन में आसपास के परिचित लोग ही दरी इत्यादि बिछाने/उठने का कार्य किया करते थे।फिल्मी भाषा में “पर्दे के पीछे” कार्य करने वाले कहलाते हैं।
हमारे जैसे माध्यम श्रेणी के लोग विवाह को मैरिज कहते हैं। वैडिंग शब्द पश्चिम से है, इसलिए “वैडिंग बेल” का उपयोग भी पश्चिम में ही लोकप्रिय हैं। हमारे यहां तो” गेट बेल ” बजने पर भी लोग कहने लगे है, अब कौन आ टपका है ?
© श्री राकेश कुमार
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