आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – दम भले ही हमारा निकलता रहे…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 64 – दम भले ही हमारा निकलता रहे… ☆ आचार्य भगवत दुबे
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जब तलक चाँद छत पर टहलता रहे
खौफ तनहाइयों का भी टलता रहे
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अपने होंठों से, साकी पिलाये जो तू
दौर, फिर मयकशी का ये चलता रहे
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गर्म साँसें जो साँसों से मिलती रहें
इन शिराओं का शोणित पिघलता रहे
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पत्थरों से भी रसधार आने लगे
तू जो हौले से इनको मसलता रहे
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वो न आएँगे मेंहदी लगाये बिना
दम, भले ही हमारा निकलता रहे
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© आचार्य भगवत दुबे
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈