श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर भावप्रवण एवं सार्थक रचना ‘नमकीन नदी – स्त्रियाँ‘। आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकते हैं । )
☆ नमकीन नदी – स्त्रियाँ ☆
स्त्रियाँ जानती हैं कीमियागिरी
वे धागे को मन्नत में
काजल को नज़र के टीके में
नमक को ड्योढ़ी में रख
इंतज़ार काटना जानती हैं
वे मिर्ची और झाडू से उतारतीं हैं बुरी बला
अपनी रसोई में खोज लेतीं हैं संजीवनी
कई बीमारियों का देतीं हैं रामबाण इलाज
अपनी दिनचर्या के वृत्त में भी
साध लेतीं हैं ईश्वर की परिक्रमा
माँग लेतीं हैं परिवार का सुख
कभी – कभी वे ओढ़तीं हैं कठोरता
दंड भी देतीं हैं अपने इष्ट को
रहते हैं वे कई प्रहर जल में मग्न
सारे संसार को झाड़ बुहार
आहत होतीं हैं अपनों के कटाक्षों से
तब , तरल हो रो लेतीं हैं कुछ क्षण
दिखावे के लिए काटतीं हैं ‘प्याज’*
है ना ! प्रिय स्वरांगी*
प्याज के अम्ल से तानों के क्षार की क्रिया कर
वे जल और नमक बनातीं हैं,
जिसमें तिरोहित करतीं हैं अपने दुःख
बनती जातीं हैं नमकीन
तुम पुरुष, जिसे लावण्य समझते हो !
* स्वरांगी साने की चर्चित कविता प्याज
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र