श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना या अनुरागी चित्त की। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 207 ☆ या अनुरागी चित्त की

भटकता हुआ मन कैसे, कब, कहाँ, किस ओर आकर्षित हो जाए ये कहा नहीं जा सकता। आँधी- तूफान की तरह विचारों का आना- जाना, सही गलत का भेद भुलाकर बस अपने लाभ की चिंता में सारा जीवन बिता देना। अंत समय में लेखा- जोखा की फाइल देखने पर सब कुछ शून्य बटे सन्नटा।

ऐसी स्थिति सभी की होती है, जीवन के हर पहलू को ध्यान से देखें तो समझ में आता है बिना मतलब इधर से उधर चहलकदमी करते हुए वक्त बिता दिया है। सारे परिणाम अपने अनुकूल कभी नहीं रहे, मजे की बात तो ये है कि जो कुछ मिला उसमें असंतुष्टि रही। भावना और संभावना के खेल में उलझते हुए कब समय बीत गया ये पता ही नहीं चला। पसंद और नापसंद के साथ जिसे रहना आ गया समझो वो विजेता की तरह लक्ष्य को साध ले जाएगा। क्या आपने महसूस किया कि परिणाम कभी आशानुरूप नहीं होते हैं, जब ऐसा लगता है कि बस मंजिल चार कदम की दूरी पर है तो अचानक से उम्मीद टूट जाती है। जो है जैसा है उसे बदलने से कहीं ज्यादा अच्छा ये होगा कि हम स्वयं के दृष्टिकोण को बदले, हर पल कुछ नया सीखते हुए समय का सदुपयोग करें। सकारात्मक चिंतन से सब कुछ संभव है।

जो लोग निरंतर अपने कार्यों में जुटे रहते हैं उन्हें देर- सबेर सही पर योग्यता से अधिक मिल जाता है इसीलिए सपनों का पीछा करते रहिए, अपने आपको उपयोगी बनाइए तभी सफलता मिलने पर आपको सच्चा आनन्द आएगा और शिखर पर लंबे समय तक टिक पायेंगे।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments