श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “इस जहान में जीना है तुम्हें तब तक…” ।)
ग़ज़ल # 132 – “इस जहान में जीना है तुम्हें तब तक…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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ज़िंदगी जब तलक आबाद रहती है,
जीव में एक ललक शादाब रहती है।
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दिल हमारा ख़ाली कब रह पाता है,
तू नहीं होता तेरी याद रहती है।
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आशिक़ किसी दम तन्हा कहाँ रह पाता,
माशूक़ से मिलने की फ़रियाद रहती है।
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खंडहर में कबूतर फड़फड़ाते हर दम,
कोई आरज़ू दिल ए बरबाद रहती है।
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खूब जोड़ो धन दौलत माल ओ असबाब,
फिर वह सब मौत की ज़ायदाद रहती है।
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इस जहान में जीना है तुम्हें तब तक,
साँस तेरी जब तलक निर्बाध रहती है।
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कसमसाती आतिश की आह दबी कुचली,
बस एक तमन्ना-ए-वस्ल नाशाद रहती है।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈