सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से …  – संस्मरण – भूटान की अद्भुत यात्रा)

? मेरी डायरी के पन्ने से # 21 – भूटान की अद्भुत यात्रा – भाग – 4 ?

(28 मार्च 2024)

आज हम पारो पहुँचे थे। पहाड़ी के ऊपर स्थित एक भव्य तथा सुंदर होटल में हमारे रहने की व्यवस्था थी। होटल के कमरे से बहुत सुंदर मनोरम दृश्य दिखाई देता था। नीचे नदी बहती दिखाई दे रही थी।

पारो पहुँचने से पूर्व हमने पारो एयर पोर्ट का दर्शन किया। ऊपर सड़क के किनारे खड़े होकर नीचे स्थित हवाई अड्डा स्पष्ट दिखाई देता है। यह बहुत छोटा हवाई अड्डा है। भूटान के पास दो हवाई जहाज़ हैं। यहाँ आनेवाले विदेशी पर्यटक दिल्ली होकर आते हैं क्योंकि भूटान एयर लाइन दिल्ली और मुम्बई से उड़ान भरती है। इस हवाई अड्डे पर दिन में एक या दो ही विमान आते हैं क्योंकि छोटी जगह होने के कारण रन वे भी अधिक नहीं हैं। साफ़ -सुथरा हवाई अड्डा। दूर से और ऊपर से देखने पर खिलौनों का घर जैसा दिखता है।

दोपहर का भोजन हमने एक भारतीय रेस्तराँ में लिया जहाँ केवल निरामिष भोजन ही परोसा जाता है। पेमा और साँगे के लिए अलग व्यवस्था दी गई और उन्हें लाल भात और मशरूम करी और दाल परोसी गई। पेमा ने बताया कि अपने साथ घूमने वाले पर्यटकों को जब वे ऐसे बड़े रेस्तराँ में लेकर आते हैं तो उन्हें कॉम्प्लीमेन्ट्री के रूप में (निःशुल्क) भोजन परोसा जाता है। पर यह भोजन फिक्स्ड होता है। अपनी पसंदीदा मेन्यू वे नहीं ले सकते। पर यह भी एक सेवा ही है। वरना आज के ज़माने में मुफ़्त में खाना कौन खिलाता है भला!

रेस्तराँ से निकलते -निकलते दो बज गए। हमारी सहेलियाँ वहाँ के लाल चावल और कुछ मसाले खरीदना चाहती थीं तो हम उनके लोकल मार्केट में गए। वहाँ कई प्रकार की स्थानीय सब्ज़ियाँ देखने को मिलीं जो हमारे यहाँ उत्पन्न नहीं होतीं। कई प्रकार की जड़ी बूटियाँ दिखीं जिसे वे सूप पकाते समय डालते हैं जिससे वह पौष्टिक बन जाता है।

कुछ मसाले और चावल खरीदकर अब हम एक ऐसी जगह गए जहाँ सड़क के किनारे कई दुकानें लगी हुई थीं। इन में पर्यटकों की भीड़ थी क्योंकि वे सोवेनियर की दुकानें हैं। वहाँ महिलाएँ ही दुकानें चलाती हैं। हर दुकान के भीतर सिलाई मशीन रखी हुई दिखी। महिलाएँ फुरसत मिलते ही बुनाई, कढ़ाई, सिलाई का काम जारी रखती हैं। कई प्रकार के छोटे पर्स, थैले, पेंसिल बॉक्स, शॉल आदि बनाती रहती हैं। कुछ महिलाओं के साथ स्कूल से लौटे बच्चे भी थे। शाम को सात बजे सभी दुकानें बंद कर दी जाती हैं। खास बात यह है कि सभी महिलाएँ व्यवहार कुशल हैं और हिंदी बोलती हैं। हमें उनके साथ बात करने में आनंद आया। कुछ उपहार की वस्तुँ खरीदकर गाड़ी में बैठने आए। इस बाज़ार की एक और विशेषता देखने को मिली कि यहाँ गाड़ियाँ नहीं चलती। सभी खरीददार बिना किसी तनाव या दुर्घटना के भय से आराम से हर दुकान के सामने खड़े होकर वस्तुएँ देख, परख, पसंद कर सकते हैं। दुकानों और मुख्य सड़क के बीच कमर तक दीवार बनाई गई है। ग्राहकों के चलने के लिए खुला फुटपाथ है। ऐसी व्यवस्था हमें गैंगटॉक और लेह में भी देखने को मिली थी। इससे पर्यटकों को भीड़ का सामना नहीं करना पड़ता है।

अब तक पाँच बज चुके थे। पेमा ने हमें पूरे शहर का एक चक्कर लगाया और हम होटल लौट आए।

पारो शहर स्वच्छ सुंदर है। खुली चौड़ी सड़कें, विद्यालय से लौटते बड़े बच्चे जगह -जगह पर खड़े होकर हँसते -बोलते दिखे। पहाड़ी इलका और प्रकृति के सान्निध्य में रहनेवाले ये खुशमिजाज़ बच्चे हमारे मन को भी आनंदित कर गए। हम होटल लौट आए। चाय पीकर हम तीनों फिर ताश खेलने बैठे।

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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