श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – बदल गया है आज जमाना”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 140 – मनोज के दोहे ☆
(दोहा – सृजन हेतु शब्द – वारिद, वर्षा, पुरवा, पछुआ, पावस)
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वारिद लाए विपुल जल, बुझी धरा की प्यास ।
धरती ने फिर ओढ़ ली, हरित चूनरी खास।।
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वर्षा ने हर्षित किया, जड़ चेतन संजीव।
मंदिर में कृष्णा हँसे, शांत दिखे गांडीव।।
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पुरवा सुखद सुहावनी, कर मन को आल्हाद।
हर लेती मन के सभी, क्षण भर में अवसाद।।
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पूरब में पछुआ बही, बदली उनकी चाल।
फटी जीन्स की आड़ में, दिखें युवा बेहाल।।
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पावस ने सौगात दी, हरियाली चहुँ ओर ।
झूम उठा मन बावला, झरनों का सुन शोर।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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