प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण गीत  – “नये कदम बढ़ाता चल। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 190 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत नये कदम बढ़ाता चल ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

तू गाता चल मुस्काता चल,

आगे बढ़ राह बनाता चल

ये दुनियाँ चलती जाती है,

रूक मत तू चलते जाता चल ।।१।।

*

दुख दर्द भरी दुनियाँ में यहाँ,

कष्टों से कहीं भी चैन कहाँ ?

मिल जायें जभी दो पल मन के,

मन की उलझन सुलझाता चल ।।२।।

*

दुख के ही अधिक सताये हैं,

सुख तो थोड़े पा पाये हैं

जो मिले राह में गले लगा,

उनको भी राह दिखाता चल ।।३।।

*

जो थककर हिम्मत हारे हों,

घबराकर एक किनारे हों

उनके मन में अपनी गति से,

आशा की ज्योति जगाता चल ।।४।।

*

हर पीढ़ी ने जो भी आई,

नई झेलीं जग में कठिनाई

पाने को अपनी मंजिल तू,

हर क्षण नये कदम बढ़ाता चल ।। ५।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments