श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “हस्तरेखा”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 202 ☆
🌻लघु कथा🌻 हस्तरेखा 🌻
तीसरी मंजिल पर छोटा सा कमरा। गर्मी का समय सिर्फ ऊपर पंखा लगा था। किनारे पर टेबिल पर एक भरा हुआ पानी का जग दो गिलास।
नीचे बहुत बड़ा बंगला। बोर्ड लगा था। महान ज्योतिषाचार्य मिलने का समय दोपहर 1:00 से शाम 6:00 बजे तक। जब सीमा को पता चला कि ज्योतिषाचार्य जी के आँख का मोतियाबिंद ऑपरेशन हुआ है।
वह देखने पहुंच गई। वैसे भी उसका आना-जाना लगा रहता था। जैसे ही वह घर पहुंची। आचार्य जी ने गदगद मन से कहा… आओ कुछ पूछना है क्या? या यूँ ही अपने काम के सिलसिले में आई हो? सीमा ने कहा- नहीं नहीं.. आचार्य जी, मैं तो आपकी कुशलता के बारे में पूछने आई हूँ।
– हाँ, तुम तो समाज सेवा कर रही हो।
एक हँसी सी कुटिल मुस्कान के साथ। उसने धीरे से कहा… और आज आप अपनी हस्त रेखा के बारे में भी बता दीजिए।
ज्योतिषाचार्य के आँखों से आँसू गिरने लगे। यदि मैं कहूं कि मेरा भविष्य अंधकार में है तो आप क्या कहना चाहेंगी। हस्तरेखा बता रही हैं।
सीमा ने कहा तो आप कुछ उपाय क्यों नहीं कर लेते। आचार्य जी ने कहा.. बेटा दुनिया को बताना और अपने लिए करना और कहना आज सबसे बड़ा कार्य होता है। पर देखना तुम आज आई हो अब मेरे लिए कुछ अच्छा होगा।
उनकी असमर्थता समझते देर न लगी। भारी मन से सीमा लौट चली। कुछ रुपयों को उनके सिरहाने रखकर।
कुछ अच्छा ही होगा क्या कुछ कहती है हस्तरेखा मन ही मन विचार करती रही। क्या सचमुच जीवन हस्तरेखा पर निर्भर!!!! नहीं- नहीं दुनिया पैसों पर चलती है। सीमा ने कसकर मुट्ठी बंद कर लिया और मन में बोलने लगी…
– यह पैसों की दुनिया है।
– यह पैसों की दुनिया है।
☆
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈