श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “भागीदार”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 191 ☆
☆ # “भागीदार” # ☆
आंखें नम है
वाणी लड़खड़ा रही है
शब्द घायल हैं
खामोशी कुछ कह रही है
मुरझाई हुई कलियां हैं
खाली फूलों की डलिया हैं
सहमी सहमी गलियां हैं
वक्त कैसा छलिया है
उपवन मे कैसी
जंगली हवा बह रही है
शब्द घायल हैं
खामोशी कुछ कह रही है
पालक डर से पेशोपेश में हैं
बालक-बालिकाएं कहां होश में हैं
किस पर भरोसा करें यहां पर
ना जाने कौन किस भेष में हैं
अविश्वास की खाई
दिन-ब-दिन बढ़ रही है
शब्द घायल हैं
खामोशी कुछ कह रही है
सरमायेंदारों का सर पर हाथ है
फिर डर की क्या बात है ?
कानून कटघरे में खड़ा है
जब सत्ता का इनको साथ है
अहंकार की सुरा
धीरे धीरे चढ़ रही है
शब्द घायल हैं
खामोशी कुछ कह रही है
हम सब भी इसके गुनहगार हैं
इन विकृत घटनाओं के जिम्मेदार हैं
जब हम महिमा मंडित
करते हैं इन वहशियों को
तो इस पाप के
हम सब भी भागीदार हैं
यह नई परंपरा
अब नई पीढ़ी गढ़ रही है
शब्द घायल हैं
ख़ामोशी कुछ कह रही है
आंखें नम हैं
वाणी लड़खड़ा रही है/
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈