श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 142 – मनोज के दोहे ☆
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अच्युत प्रभु परमात्मा, सबका पालन हार।
जगत नियंता है वही, यह वेदों का सार।।
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अलंकार से अलंकृत, करें यशश्वी गान।
गुणवर्धन यश अर्चना, मिले सदा सम्मान।।
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सूर्यसुता में गंदगी, नाग-कालिया दाह।
उगल रही है झाग फिर, नहीं सूझती राह।।
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द्वापरयुग में कृष्ण जी, गोरक्षक बलराम।
गोवर्द्धन संकल्प ले, किए विविध हैं काम।।
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भाद्रमाह जन्माष्टमी, मुरलीधर घनश्याम।
दुख को हरने अवतरित, जय पावन ब्रज-धाम।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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