श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर भावप्रवण एवं सार्थक रचना ‘हाथों में हाथ ‘। आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकते हैं । )
☆ हाथों में हाथ ☆
तुमनें हाथ से छुड़ाया हाथ
और हाथ मेरा
दुआ मांगता आसमां तकता रहा
मुझे नहीं चाहिए अनामिका में
किसी धातु का कोई छल्ला
जो दबाव बनाता हो हृदय की रग में
तुम बस मेरी उंगलियों के
मध्य के खाली स्थान को भर दो
मेरे हाथ को बेवजह यूँ ही पकड़ लो
ताकि, मैं महसूस कर सकूं
मुलायम हाथ की मज़बूत पकड़
कह सकूं,
“दुनिया को हाथ की तरह
गर्म और सुन्दर होना चाहिये “
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र