आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है सॉनेट – प्रणामांजलि…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 202 ☆
☆ सॉनेट – प्रणामांजलि ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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आराम-विराम न साध्य जिन्हें
कर सकीं न बाधा बाध्य जिन्हें,
था सत्य-धर्म आराध्य जिन्हें
शत नित्य प्रणाम, प्रणाम उन्हें।
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था अधिक इष्ट से भक्त जिन्हें
था शत्रु स्वार्थ-अनुरक्त जिन्हें
थी सत्ता पर में त्याज्य जिन्हें
शत नित्य प्रणाम प्रणाम उन्हें।
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था जनगण-मन आवास जिन्हें
था जंगल में मधुमास जिन्हें
अरि कहते थे खग्रास जिन्हें
शत नित्य प्रणाम प्रणाम उन्हें।
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जो कल को कल की थाती हैं,
शत नित्य प्रणाम प्रणाम उन्हें।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१६.४.२०२४
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