श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “क्या क्या नहीं कहा?”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 191 ☆
☆ # “क्या क्या नहीं कहा?” # ☆
जीने की आरजू में
क्या क्या नहीं सहा
किस किसने कब कब
क्या क्या नहीं कहा
हम सदियों से अंधेरे में
ढूंढते रहे सूर्य किरण
सूरज के पहरेदारों ने
क्या क्या नहीं कहा
गरीब की कुटिया में
खेलती है मुफलिसी
महल के धनवानों ने
क्या क्या नहीं कहा
रोटी के लिए हम
लड़ते रहे रात-दिन
रोटी के ठेकेदारों ने
क्या क्या नहीं कहा
मंदिर की सीढ़ियों पर
हम ढूंढते रहे ईश्वर
मंदिर के पुजारियों ने
क्या क्या नहीं कहा
भरोसा नहीं रहा अब
जमाने पर दोस्तों
टूटते हुए रिश्तों ने
क्या क्या नहीं कहा
मां-बाप बोझ बन गए हैं
बच्चों पर आजकल
बूढ़े हुए मां-बाप को
क्या क्या नहीं कहा
हम दो हमारा एक
सिमटते परिवारों को देख
समझाने बहू-बेटों को
क्या क्या नहीं कहा
आंखें खुली हुई हैं पर
बुद्धि गुलाम है
ऐसे मंद बुद्धियों को समझाने
क्या क्या नहीं कहा
कौन सुनता है
तुम्हारी बातों को अब “श्याम”
क्या भूल गए, तुम्हें दुनिया ने
क्या क्या नहीं कहा /
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈