श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – नारी। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 189 ☆
☆ संतोष के दोहे – नारी… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
☆
नारी से दुनिया बनी, नारी जग का मूल
हर घर की वो लक्ष्मी, दें आदर अनुकूल
☆
चले सभी को साथ ले, सहज सरल स्वभाव
रखती कभी न बे-बजह, कोई भी दुर्भाव
☆
सीता, दुर्गा, कालका, नारी रूप अनूप
राधा, मीरा, द्रोपदी, अलग-अलग बहु रूप
☆
नारी बिन संभव नहीं, उन्नत सकल समाज
समझें मत अबला कभी, करती सारे काज
☆
सारे रिश्तों की धुरी, उसका हृदय विशाल
माँ-बेटी भाभी बहन, बन पत्नी ससुराल
☆
प्रेम, त्याग, ममता, दया, करुणा करे अपार
धीरज, -धरम न छोड़ती, उसकी जय-जय कार
☆
रिश्तों की ताकत वही, रखती दिल में प्यार
जीवन में “संतोष” रख, आँचल चाँद-सितार
☆
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
सर्वाधिकार सुरक्षित
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈