श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।
ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं – “पद्मश्री शरद जोशी”।)
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
पद्मश्री श्री शरद जोशी
(जन्म – 21 मई 1931- निधन – 5 सितंबर 1991)
☆ कहाँ गए वे लोग # २८ ☆
☆ “पद्मश्री श्री शरद जोशी ” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
शरद जोशी जी ने एक जगह लिखा है…
“पृथ्वी पर जन्म लेने के समय खुद ईश्वर अपने लिए ऐसा बाप छांटता है जो खाता कमाता और सुखी हो। अक्सर ही ईश्वर ने राजा के घर जन्म लिया है, उससे कई सहूलियतें रहतीं हैं…”
ऐसे महान व्यंग्यकार शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को उज्जैन, मध्य प्रदेश में श्रीनिवास और संतोषी जोशी के परिवार में दूसरी संतान के रूप में हुआ था। उनकी चार बेटियाँ हैं। शरद जी को बचपन से ही लेखन में दिलचस्पी थी।
उन्होंने इंदौर के होलकर कॉलेज से बी.ए. किया था।
शरद जोशी जी ने इंदौर में समाचार पत्रों और रेडियो के लिए लिखने से अपने करियर की शुरुआत की, जहां उनकी मिलस्कात इरफाना सिद्दीकी से हुई, जिनसे उन्होने बाद में शादी की।
वे हिंदी के महान कवि, लेखक, व्यंग्यकार और हिंदी फिल्मों और टेलीविजन के संवाद और पटकथा लेखक थे। उनके लघु व्यंग्य लेख प्रमुख हिंदी अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए, जिनमें नई दूनिया, धर्मयुग, रविवार, सप्तक, हिंदुस्तान, कादंबनी और ज्ञानोदय शामिल हैं। नवभारत टाइम्स में उनके दैनिक कॉलम “प्रतिदिन” को सात साल तक प्रकाशित किया गया और देखते देखते अखबार हाथों हाथ बिकने लगा, लोग सबसे पहले प्रतिदिन कालम पढ़ते थे।
बहुत पहले आदरणीय शरद जोशी जी “रचना” संस्था के आयोजन में परसाई की नगरी जबलपुर में मुख्य अतिथि बनकर आए थे, हम उन दिनों “रचना ” के संयोजक के रूप में सहयोग करते थे।
“रचना” साहित्यिक सांस्कृतिक सामाजिक संस्था का मान था उन दिनों। हर रंगपंचमी पर राष्ट्रीय स्तर के हास्य व्यंग्य के ख्यातिलब्ध हस्ताक्षर आमंत्रित किए जाते थे। हम लोगों ने आदरणीय शरद जोशी जी को रसल चौक स्थित उत्सव होटल में रूकवाया था, “व्यंग्य की दशा और दिशा” विषय पर केंद्रित इस कार्यक्रम के वे मुख्य अतिथि थे। व्यंग्य विधा के इस आयोजन के प्रथम सत्र में ख्यातिलब्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी की रचनाओं पर आधारित रेखाचित्रों की प्रदर्शनी का उदघाटन करते हुए जोशी जी ने कहा था- “मैं भाग्यवान हूं कि परसाई के शहर में परसाई की रचनाओं पर आधारित रेखाचित्र प्रदर्शनी के उदघाटन का सुअवसर मिला, फिर उन्होंने परसाई की सभी रचनाओं को घूम घूम कर पढ़ा हंसते रहे और हंसाते रहे। ख्यातिलब्ध चित्रकार श्री अवधेश बाजपेयी की पीठ ठोंकी, खूब तारीफ की। व्यंग्य विधा की बारीकियों पर उभरते लेखकों से लंबी बातचीत की। शाम को जब होटल के कमरे में वापस लौटे फिर दिल्ली के अखबार के लिए ‘प्रतिदिन ‘कालम लिखा, हमें डाक से भेजने के लिए दिया। स्थानीय साहित्यकारों के साथ थोड़ी देर चर्चा की, फिर टीवी देखते देखते सो गए।”
उन्होंने चौदह पुस्तकें लिखीं: परिक्रमा, केसी बहेन, तिलस्म, जीप पार संवार इल्लियां, राह किनारे बैठ, मेरी श्रेष्ठ रचनाएँ, दूसरी कथा, यथा संभव, यत्र तत्र सर्वत्र, यथा समा, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, और प्रतिदिन 3भागों में। उनकी पुस्तकें जीप पर संवार इल्लियां ’सरकारी अधिकारियों पर एक जबरदस्त व्यंग्य है।
उनके लिखे नाटक-
अंधों का हाथी,एक था गधा उर्फ़ अलादत खान। यह व्यंग्य नाटक पिछले दशक के सबसे लोकप्रिय नाटकों में से एक था।
संवाद लेखक के रूप में फिल्मोग्राफी:
- क्षितिज (1974)
- छोटी सी बात (1975)
- सांच को आंच नहीं (1979)
- गोधुली (1977)
- चोरनी (1982)
- उत्सव (1984)
- मेरा दमाद (1990)
- दिल है कि मानता नहीं (1991)
- उदान (1997)
टीवी धारावाहिक–
- ये जो है जिंदगी (1984-85)
- विक्रम और वेताल
- वाह जनाब
- दाने अनार के
- श्रीमती जी
- सिंहासन बत्तीसी
- ये दुनीया है गजब की
- प्याले माई तोफान
- गुलदस्ता
- लापतागंज (2009)
शरद जोशी जी ने कवियों के चरित्र को देखते हुए इस कविता में शब्दों को जोड़-तोड़ कर कविता लिखने वालों पर करारा व्यंग्य किया था:
‘च’ ने चिड़िया पर कविता लिखी।
उसे देख ‘छ’ और ‘ज’ ने चिड़िया पर कविता लिखी।
तब त, थ, द, ध, न, ने
फिर प, फ, ब, भ और म, ने
‘य’ ने, ‘र’ ने, ‘ल’ ने
इस तरह युवा कविता की बारहखड़ी के सारे सदस्यों ने
चिड़िया पर कविता लिखी।
चिड़िया बेचारी परेशान
उड़े तो कविता
न उड़े तो कविता।
तार पर बैठी हो या आँगन में
डाल पर बैठी हो या मुंडेर पर
कविता से बचना, मुश्किल
मारे शरम मरी जाए।
एक तो नंगी,
ऊपर से कवियों की नज़र
क्या करे, कहाँ जाए
बेचारी अपनी जात भूल गई
घर भूल गई, घोंसला भूल गई
कविता का क्या करे
ओढ़े कि बिछाए, फेंके कि खाए
मरी जाए कविता के मारे
नासपिटे कवि घूरते रहें रात-दिन।
एक दिन सोचा चिड़िया ने
कविता में ज़िन्दगी जीने से तो मौत अच्छी।
मर गई चिड़िया
बच गई कविता।
कवियों का क्या,
वे दूसरी तरफ़ देखने लगे।”
……
शरद जोशी ने अपनी स्पष्ट और पृथक पहचान बनाई थी। शरद जोशी ने इस कदर धुआंधार लेखन किया कि हजारों की संख्या में रचनाओं का अम्बार खड़ा कर दिया। उनकी इन रचनाओं की शैली परसाई की लेखन शैली से भिन्न थी। शरद जोशी ने अपने व्यंग्य के नये शिल्प इस तरह गढ़े कि बाद के लेखकों में उनका प्रभाव व अनुसरण अधिक दिखने लगा।परसाई का लेखन अपने किस्म का एक फौजदारी मामला लगता था जबकि शरदजी किसी प्रकार के खून खराबे से बचकर मामले को दीवानी बनाए रखने के पक्षधर लगते थे।
परसाई से कम उम्र होने के बाद भी शरद जोशी पहले दिवंगत हो गए थे तब मध्य प्रदेश साहित्य परिषद ने उनके नाम से व्यंग्य लेखन के लिए ‘शरद जोशी पुरस्कार’ रखा। यह पहला शरद जोशी सम्मान श्रेष्ठ व्यंग्य लेखन के हरिशंकर परसाई को दिया गया था। इस विडंबना पूर्ण उपलब्धि को परसाई जी ने प्राप्त किया था। परसाई व्यंग्य के प्रथम पुरुष थे पर खुद को व्यंग्यकार कहलवाने का आग्रह उनमें नहीं था। यह आग्रह शरद जोशी में भी नहीं रहा होगा पर उनके पाठक उनके नाम के आगे व्यंग्यकार का विशेषण किसी विभूषण की तरह लगाने लगे और वे ‘व्यंग्यकार शरद जोशी’ कहलाने लगे थे।
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈