श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 101 ☆ देश-परदेश – ऊपर उठो, ऊपर उठो ☆ श्री राकेश कुमार ☆
इन दकियानूसी आदतों से अब ऊपर उठ जाओ, समय के साथ चलो। दिन भर पतंग, गिल्ली डंडा खेलते रहते हो, इन को छोड़ ऊपर उठो पढ़ाई/ लिखाई कर लो, जिंदगी में कुछ बन कर दिखाओ। पूरा बचपन ये ही सब सुनते सुनते बीत गया।
पांच दशक से हमने देखा कि हम सब बहुत ऊपर उठ गए है। चटाई पर भोजन ग्रहण करने वाले अब प्रसादी भी ऊंचे टेबल कुर्सी पर ग्रहण करते हैं।
जब भोजन ऊंचाई पर करना है, तो वो भी ऊंचाई वाले प्लेटफार्म पर ही ना, बनेगा। पूर्वकाल में रात्रि जमीन पर सब चैन की नींद सोते थे, अब ऊंचे पलंग पर मोटी ऊंचाई वाले गद्दों पर नींद की गोली खा कर ही नींद प्राप्त होती हैं।
कार्यालय, दफ्तर सब में टेबल/कुर्सी सामान्य बात होती हैं। अब तो किराना, कपड़े आदि वाले दुकानदार भी तख्त छोड़ काउंटर पर व्यापार कर ऊंचे व्यक्तियों की श्रेणी में शामिल हो चुके हैं। “ऊंचे लोग ऊंची पसंद” खाने वाले ऊपर भी जल्दी ही चले जाते हैं।
विवाह के समय में अग्नि देवता के समक्ष सब कुर्सियों पर विराजमान मिलेंगे। नीचे बैठने से पतलून की क्रीज़ खराब हो जाती हैं। कोट के कपड़े का फॉल भी नहीं पता चलता हैं।
श्रद्धांजलि सभा में भी कमर की तकलीफ का हवाला देख कर कुर्सी पर बहुत सारे युवा बैठे हुए दिख जाते हैं। दिन का आरंभ डेढ़ फुट ऊंचे शौचालय पर बैठ कर करने वालों के घुटनों की रिप्लेसमेंट भी गारंटी से पूर्व समाप्त हो जाता हैं।
घुटने संबंधित रोग इसी ऊंचाई के कारण फल फूल रहें हैं। आने वाले समय में शल्य चिकत्सा में “घुटना विशेषज्ञ” एक अलग विषय बन जायेगा।
हमारे जैसे लोग इस “घुटना रोग ” से बहुत डरते है, क्योंकि हमारा दिमाग जो इन घुटनों में रहता हैं। इसलिए जमीं से जुड़े रहें, अंत में इसी जमीं का सहारा हैं।
© श्री राकेश कुमार
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