श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है एक विचारणीय संस्मरणात्मक कथा   “जीवन यात्रा“

☆ कथा-कहानी # 118 – app, logo, media, popular, social, whatsapp बैंक : हमारी कहानी  ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆ 

ग्रुप के शुरुआती दौर की पोस्ट है. कमानिया के पास गनपत मिल गया, अकेला था हमने पूछा गुरुजी कहां गये? बोला बड़कुल के यहां से खोबे की जलेबी लेने गये हैं. हमने तुरंत मौके का फायदा उठाते हुये कहा “गनपत भैया, जरा पास की स्टेट बैंक की ब्रांच चले जाओ. गनपत ने साफ मना कर दिया, बोला गुरु जी से बिना पूछे मैं कहीं नहीं जाता. हमने कहा तुम जाओ तो सही, हम उनसे पोस्टफेक्टो सेंक्शन ले लेंगे.

गनपत कुछ देर तक तो हमको ऊपर से नीचे तक देखता रहा, फिर धृष्टता से व्यंग्य भरी मुस्कान फेंककर पूछा: ये क्या होता है और इससे क्या गुरुजी हमारी क्लास नहीं लगायेंगे.

हमने कहा कि ये बैंक की शब्दावली है जब नियंत्रक को शाखा प्रबंधक पर पूरा विश्वास हो कि ये गड़बड़ नहीं करेगा या अगर कर भी लिया तो हमारे हिसाब में गड़बड़ नहीं करेगा तो वो शाखाप्रबंधक के कान में विश्वास या अंधविश्वास का मंत्र फूंक देते हैं और काम सबका चलता रहता है. खैर बात तो गनपत के सर के ऊपर से अर्जुन के तीर के समान सांय से गुजर गई और उसने फिर से, इस बार मजबूती से हमारे सम्मान की वाट लगाते हुये फिर मना कर दिया.

हमने अगला तीर निशाने में लगाने की फिर कोशिश की कि गनपत, गुरुजी हमारे बड़े भाई के समान हैं, वो हमारे ग्रुप में भी हैं जिसमें हम एडमिन बन कर बैठे हैं.

गनपत : कौन सा ग्रुप?

मैं : बैंक : हमारी कहानी

गनपत :इसमें क्या होता है?

मैं : हम लोग बैंक में जो काम करते थे न, उसकी कहानी कहते हैं. बाहर की बात भी कर सकते हैं पर पकापकाया माल एलाउड नहीं है, लोग बहुत अच्छे हैं, मान गये हैं, हमको सब लोग पसंद भी हैं. इत्ता तो नौकरी करते वक्त भी नहीं करते थे.

रोज बॉस की डांट खाते थे.

गनपत :और ये एडमिन क्या होता है.

मैं : ये बिना पावर बिना वेतन का अधिकारी होता है.

गनपत : ये तो हमको भी गुरुजी बताये थे कि शाखा में चेक पास करने और पेटीकेश का मनमुताबिक उपयोग करने के अलावा कोई डायरेक्ट अधिकार नहीं होता और जो अधिकार होता है वो अधिकार कम फसौवल ज्यादा हैं. पर एडमिन भैया आपको तन्खा नहीं मिलती, मानदेय तो मिलता होगा.

एडमिन : मानदेय मतलब मान देना पड़ता है गनपत, अब जल्दी से बैंक जाकर पता कर लो कि चल रही है क्या हमारे बिना.

गनपत : जाने की क्या जरूरत, यहीं कमानिया के पास खड़े होकर बता रहे हैं, बहुत बढ़िया चल रही है, पहले से बेहतर चल रही है क्योंकि नये लड़के तो कंप्यूटर के मास्टर हैं, सब खुद ही ठीक कर लेते हैं. आप बिल्कुल भी चिंता मत पाले, अपने ग्रुप पर ध्यान दो, कभी कभी भटक जाता है. अब मैं जा रहा हूँ, वो देखिए गुरुजी आ रहे हैं.

हमने नपे तुले कदमों से बड़कुल के सामने महावीर दूध भंडार की तरफ रुख किया और ऑर्डर प्लेस किया एक केसरिया दूध मलाई मारके. गिलास गरम लगा तो ऑंख खुल गई, वास्तविकता में पत्नी ने हमारी कनिष्ठा उंगली चाय के कप से टच कर दी थी.

गुरुजी से पोस्टफेक्टो सेंक्शन की उम्मीद से 💐🙏

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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