श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 103 ☆ देश-परदेश – शिक्षण संस्थाएं: जिम्मेवारियां ☆ श्री राकेश कुमार ☆
गुरुकुल जैसी शिक्षण संस्थाओं के बारे में पुस्तकों या टीवी सीरियल जैसे प्लेटफार्म से जानकारी प्राप्त हुई है, कि वहां किस प्रकार से कठोर नियम और दिनचर्या का पालन करना पड़ता था।
आज निजी क्षेत्र में अधिकतर पाठशालाएं कार्य कर रहीं हैं। निजी क्षेत्र हमेशा स्वार्थहित के लिए कार्य करता है। बच्चों पर आज भी शिक्षक का प्रभाव माता पिता से अधिक होता हैं।
प्रातः भ्रमण के समय देखा कि अभिभावक घर के बाहर अपने बच्चों को स्कूल जाने के लिए इंतजार में खड़े रहते हैं, या स्कूल की बस / टेंपो आदि बच्चों को बुलाने के लिए तीव्र गति वाले हॉर्न बजाकर इंतजार करते हुए मिल जाते हैं। कुछ अभिभावक प्रतिदिन बच्चों को अपने साधन से स्कूल तक छोड़ कर भी आते हैं।
अल सुबह जल्दी के चक्कर में बस / टेंपो आदि गलत दिशा से आकर बच्चों के दरवाज़े पर आते हैं। वाहन की क्षमता से अधिक बच्चे बैठा कर ले जाना एक आम बात हैं। इसमें किसकी जिम्मेवारी है, कि नियमों का पालन सुनिश्चित हो, अभिभावक और स्कूल दोनो इसके दोषी हैं।
टीनेज बच्चे अपने निजी स्कूटर आदि से बिना लाइसेंस के वाहन चलाते हुए,तीन बच्चों के साथ बिना हेलमेट,गलत दिशा से सड़क पर हमेशा मिल जाते हैं। स्कूल में प्रवेश के समय प्रबंधन को यातायात नियमों का पालन सुनिश्चित करना होगा। जो पैरेंट्स भी बिना हेलमेट आदि के बच्चों को छोड़ने आए, उनको घर वापस कर देना चाहिए।
कक्षा में बच्चों को भी नियमों की जानकारी देकर उनके माध्यम से पैरेंट्स को बाध्य किया जा सकता है। लाल बत्ती पर रुकना हो या कार में बेल्ट लगाना, बच्चे अपने पेरेंट्स को मना सकते हैं।
सुपर रईसों के स्कूल में तो ड्राइवर, पैरेंट्स आदि बड़ी और लंबी गाड़ियों से बच्चों को छोड़ने और लेने आते हैं। इसके लिए भी शिक्षण संस्थानों को नियम बना कर सिर्फ स्कूल वाहन से ही बच्चों को स्कूल प्रवेश की अनुमति देनी चाहिए। स्कूल के आसपास महंगी कारों के प्रतिदिन लगने वाले मेले से यातायात की परेशानियों से निजात पाई जा सके।
शिक्षण संस्थाओं को सकारात्मक सोच से बच्चों के विकास का कार्य करना चाहिए। आने वाले समय में एक अच्छे समाज के निर्माण में स्कूल एक अहम भूमिका निभा सकते हैं।
© श्री राकेश कुमार
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