श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “संतुष्टि”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 208 ☆
🌻लघु कथा🌻 🐧संतुष्टि🐧
तीन मंजिला मकान। प्रत्येक मंजिल पर शानदार फर्नीचर, मछली वाला एक्वेरियम और शो पीस जगह-जगह कालीन बिछे, बिना सिलवट पड़े चादर बिछे पलंग और वह तमाम मन को आकर्षित करने वाली वस्तुएं। सभी जगह दिखाई दे रही है।
आज उनके यहाँ दो भाइयों के बीच में बात चल रही थी कि पिताजी का श्राद्ध विधि विधान से कराया जाएगा और उनकी आत्मा की शांति के लिए साथ-साथ सभी आसपास पड़ोसियों को भोजन खिलाया जाएगा।
पड़ोसियों को भी अच्छा लगा। कम से कम इसी बहाने उनका घर तो देखने को मिलेगा। उनका रहन-सहन पता चलेगा।
निश्चित समय पर सभी को बुलाया गया। पूरे घर को बढ़िया सजाया गया था। सभी घूम-घूम कर देख रहे थे और अंत में एक आउट हाउस बना हुआ था। छोटा सा कमरा जहाँ दो पलंग।
किनारे पर रखा एक लोटा गिलास और एक टेबल जिसमें स्वर्गीय पिताजी की तस्वीर रखी गई थी सभी को वहाँ पर बैठा कर बारी- बारी भोजन कराया गया।
अब आ तो गए थे। सभी ने थोड़ा-थोड़ा खाना खाया और पूछते गए… क्या पिताजी यहीं पर रहते थे पुत्रों ने जवाब दिया.. हाँ पिताजी को यहाँ ही रखा गया था। पर उनकी आत्मा की शांति के लिए भोजन की व्यवस्था में हम लोगों ने कोई कमी नहीं की है, बताइएगा जरूर।
एक दूसरे का मुँह ताकते सभी लोग कहने लगे.. अगर यही पितरों का श्राद्ध है तो शायद उन्हें कभी भी संतुष्टि नहीं मिलेगी।
परंतु घर के सभी लोग बड़े प्रसन्न दिखाई दे रहे थे कि पिताजी का श्राद्ध चल रहा है। सभी लोग भोजन मुस्कुरा मुस्कुरा कर परोस रहे थे। किसे संतुष्टि थी… तीन मंजिल मकान की मुंह दिखाई या वक्त में पितरों का श्राद्ध???
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈