सुश्री ऋता सिंह
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से … – संस्मरण – गुजरात के दर्शनीय स्थल।)
मेरी डायरी के पन्ने से # 29– गुजरात के दर्शनीय स्थल – भाग – 6 – स्टैच्यू ऑफ युनिटी
वडोदरा में एक दिन बिताने के बाद हम स्टैच्यू ऑफ यूनिटी देखने के लिए दूसरे दिन प्रातः रवाना हुए।
बरोदा या बड़ोदरा से कावेडिया 100 कि.मी से कम है। स्टैच्यू ऑफ युनिटी इसी कावेडिया में स्थित है। यह बड़ोदरा से एक दिन में जाकर लौट आने लायक यात्रा है।
हम सुबह -सुबह ही निकल गए ताकि हमें भीड़ का सामना न करना पड़े। हम बड़ोदरा के एक बड़े बाज़ार से गुज़रे अभी यहाँ सब्ज़ी और फलवाले अपनी वस्तुएँ सजा ही रहे थे। हमने यात्रा के लिए कुछ फल ले लिए। हम अब गुजरात में रहते यह जान गए थे कि मार्ग पर भोजन की कोई व्यवस्था या ढाबे की सुविधएँ नहीं मिलेगी।
तो हमने मार्केट से गुज़रते हुए ही पर्याप्त फल और कुछ बेकरी पदार्थ साथ ले लिए।
बीच रास्ते में ही हमने एक छोटी सी टपरीनुमा जगह पर गाड़ी रोककर चाय खरीदी और उसके साथ बेकरी पदार्थ नाश्ते के रूप में खा लिए।
हम जब कावेडिया पहुँचे तब नौ बजे थे। यह स्थान नौ से शाम छह बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है। सोमवार के दिन यह बंद रहता है।
भीतर अद्भुत सुंदर व्यवस्था दिखाई दी। एक स्थान पर हमें अपनी गाड़ी पार्किंग में ही छोड़ देनी पड़ी और वहाँ खड़ी बसें हमें सुरक्षित भीतर ले गई। भीतर बड़ा -सा बस स्टॉप बना हुआ है। सभी बसें भीतर के विविध स्थान देखने के लिए पर्यटकों को ले जाती है।
यहाँ यह बता दें कि इस स्थान के दर्शन के लिए हमने प्रति सदस्य ₹1000 दिए थे। यह रकम ऑनलाइन पे करने की आवश्यकता होती है। यहाँ प्रतिदिन सीमित संख्या में ही पर्यटकों को भीतर प्रवेश दिया जाता है। यही कारण है कि टिकट न केवल महँगे हैं बल्कि ऑनलाइन भी है ताकि भीड़ पर काबू रख सकें।
भीतर कैक्टस गार्डन है। बटरफ्लाय पार्क है, न्यूट्रीशन पार्क तथा चिड़िया घर है। हमने भीतर प्रवेश करते ही साथ सबसे पहले सरदार सरोवर पर मोटर बोट द्वारा सैर करने का निर्णय लिया क्योंकि हम धूप बढ़ने से पूर्व ही इस सैर का आनंद लेना चाहते थे। हमें यहाँ कुछ मगरमच्छ भी नज़र आए। यह नर्मदा नदी का ही हिस्सा है। मोटर बोट अत्यंत आरामदायक थे। घंटे भर की सैर के बाद हम फिर से मुख्य सड़क पर बस की प्रतीक्षा में रहे।
मज़े की बात यह है कि हर जगह पर बसस्टॉप बने हुए हैं और पर्यटक कहीं से किसी भी बस में बैठ सकते हैं।
हम पुनः मुख्य बस स्टॉप पर लौट आए। यहाँ सब तरफ सुंदर चौड़ी सड़कें बनी हुई हैं। बसों पर गंतव्य का नाम लिखा हुआ होता है और पर्यटक उसी हिसाब से बसों में बैठकर सैर करते हैं।
हमने बटरफ्लाय गार्डन और कैक्टस गार्डन का आनंद लिया। भीड़ से बचने के लिए हम तुरंत ही मुख्य स्टैच्यू की ओर रवाना हुए। चिड़ियाघर अभी खुला न था।
मुख्य स्टैच्यू देखने का आकर्षण है सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति। यह 182 मीटर (597 फीट) ऊँचा है। इसे स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी नाम दिया गया है। यह संसार की सबसे ऊँची मूर्ति है। इसका निर्माण 2013 में प्रारंभ हुआ था। इसे पूर्ण होने में तैंतीस माह लगे। यह नर्मदा नदी के कावेडिया गाँव गुजरात में विद्यमान है। यहाँ काम करनेवाले सभी इसी गाँव के और आसपास की जगहों के निवासी हैं। मूर्ति सरदार सरोवर बाँध की ओर मुख किए हुए है। चारों ओर पहाड़ी इलाका है। अत्यंत रमणीय दृश्य है।
मूर्ति तक पहुँचने से पूर्व एक लंबे तथा सुंदर सुसज्जित मार्ग से होकर गुज़रना पड़ता है। मूर्ति के नीचे बड़ा सा सभागृह है। सभागृह में जाने से पूर्व हमने स्वतंत्रता संग्रामी तथा प्रथम उप प्रधान मंत्री के चरणों को स्पर्श कर प्रणाम करना चाहा। यहाँ तक पहुँचने के लिए एसकेलेटर की व्यवस्था है। हमने सरदार पटेल जी के चरणों को प्रणाम किया। यह स्थान एक ऊँची दो मंज़िली इमारत की छत जैसी है। चारों ओर घूमकर दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है। चारों ओर जल और पहाड़ी इलाका और बीच में भव्य मूर्ति किसी अलग प्रकार की दुनिया की सैर करा देती है।
हम पुनः एसकेलेटर से नीचे सभागृह में आए। यह एक विशाल सभागृह है। इसमें ऑडियो तथा विविध विडियो द्वारा स्वतंत्रता की लड़ाई का इतिहास दिखाया जाता है। अंग्रेज़ों ने जिस तरह हम पर अत्याचार किए तथा देश को लूटा उसका इतिहास भी प्रमाण के रूप में उपलब्ध है। भीतर बैठकर देखने व सुनने की पर्याप्त व्यवस्था है। अत्यंत आधुनिक ढंग से इस स्थान का निर्माण किया गया है। सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन पर रोशनी डालते कई तथ्य यहाँ पढ़ने को मिले। पर्यटकों से निवेदन है कि वे इस स्थान को महत्त्व दें तथा अधिकाधिक समय देकर उपलब्ध जानकारियों का लाभ उठाएँ।
31 अक्टोबर सन 2018 के दिन प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इस स्थान का उद्घाटन किया था। श्री राम व्ही सुतार नामक सज्जन ने इस मूर्ति के डिज़ाइन को बनाकर दिया था। इसे भव्य रूप में खड़ा करने में कई विदेशी कंपनियों का भी बहुत बड़ा सहयोग रहा है। कहा जाता है कि देश भर से लोहे इस्पात जो अब किसी काम के न थे उन्हें मँगवाए गए थे। चीन के कुछ खास शिल्पकारों का भी योगदान रहा है। स्टैच्यू स्टील फ्रेम से बनाया गया है फिर उसमें कॉन्क्रीट भरा गया है। संपूर्ण स्टैच्यू पर काँसे की परत चढ़ाई गई है जिससे न चमक कम होगी न जंग लगने की ही संभावना है और लंबे समय तक यह मूर्ति गर्व से खड़ी रहेगी। देश का गौरव बढ़ाएगी।
इस मूर्ति का निर्माण किस तरह से किया गया है उसकी भी पूरी जानकारी सभागृह में स्लाइड शो द्वारा दी जाती है। कुछ अंश सभागृह में दिखाए गए हैं।
पटेल जी के चेहरे पर जो भाव है उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि बस अभी बोल ही पड़ेंगे।
हमने कुछ तीन घंटे सभागृह में बिताए। भरपूर वास्तविक इतिहास और तथ्यों को जानकर सच में मन ग्लानि से भर उठा कि अगर पटेल जी देश के प्रथम प्रधानमंत्री होते तो देश आज कहाँ से कहाँ पहुँच गया होता। उनकी सोच, सिद्धांत और देश के प्रति जो निःस्वार्थ समर्पण की भावना थी वे अत्यंत महान थे।
हम लिफ्ट से स्टैच्यू की छाती तक पहुँचे। पटेल जी धोती कुर्ता पहनते थे। कुर्ते के ऊपर वे एक बंडी (कोट जैसा) पहना करते थे। इस मूर्ति में हम भीतर से इसी जगह पहुँचे जहाँ बंडी के चौकोर छिद्र से सारा परिसर ऊपर से दिखाई देता है। यह इतना विशाल है कि एक साथ 200 लोग आराम से खड़े होकर दृश्य का आनंद ले सकते हैं। स्टैच्यू भीतर से खोखली है और वहीं से लिफ्ट चलती है।
स्टैच्यू आकर्षक, भव्य तथा अद्भुत सौंदर्य से परिपूर्ण है। धोती पहने जाने पर उसकी सिलवटों को, कुर्ते के आस्तीन और बंडी पर का डिज़ाइन सब कुछ अद्भुत और वास्तविक से हैं। बटन तक इतने खूबसूरत और असली लगते हैं कि हर दर्शक दाँतो तले उँगली दबाए बिना नहीं रह सकता। मुझे स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (1993) देखने का सुअवसर मिला था। आज इस मूर्ति को देखने के बाद सब कुछ फीका लगने लगा। मन गर्व से भर उठा। मेरा देश सच में महान है।
शाम के पाँच बज रहे थे। हम सब नीचे उतर आए। यहाँ एक बड़ा सा कैफेटेरिया बनाया हुआ है। यहाँ पर्याप्त लोगों के बैठने की व्यवस्था है। हमने चाय और कुछ भोजन का आनंद लिया।
सूरज ढलने लगा और मूर्ति अधिक चमकने लगी। छह बजे के बाद स्टैच्यू के भीतर प्रवेश नहीं मिलता और जो भी भीतर होते हैं उन्हें भी बाहर प्रस्थान करना पड़ता है।
संध्या सात बजे लाइट ऍन्ड साउंड शो था। लोगों के बैठने के लिए बेंच लगाए जाते हैं। सभी पर्यटक धीरे धीरे बेंचों पर बैठ गए। शो प्रारंभ हुआ। संपूर्ण श्रद्धा और सम्मान के साथ पर्यटकों ने इसका आनंद लिया यह भी अद्भुत और आकर्षक रहा।
कार्यक्रम की समाप्ति पर हमें बस में बिठाकर मुख्य गेट पर छोड़ा गया। सब कुछ इतना सुव्यवस्थित था कि हमने बहुत आनंद लिया।
यहाँ पास -पड़ोस में रहने के लिए भी जगहें बनाई जा रही हैं ताकि पर्यटक एक दो दिन रहकर इस पूरे परिसर का भरपूर आनंद ले सकें। एक दिन में सब कुछ देख पाना संभव नहीं होता है।
हम बडोदरा लौट आए। दूसरे दिन हमें पुणे लौटना था। हम अभी ट्रेन में ही थे कि चीन में कोविड नामक बीमारी के फैलने तथा दुनिया भर में फैलने की खबर मोबाइल पर समाचार के रूप में पढ़ने को मिला। हम चिंतित हुए और आनंद मिश्रित भय के साथ घर लौट आए।
ऋता सिंह
मार्च 2020
2022 में मुझे पुनः कावेडिया जाने का सुअवसर मिला। इस वर्ष हम नर्मदा परिक्रमा के लिए निकले थे। अबकी बार इस स्थान पर अनेक परिवर्तन दिखाई दिए। आस पास आवास की अच्छी व्यवस्था हैं। अनेक रेस्तराँ तथा ढाबे हैं। परिसर के भीतर बैटरीवाली टमटम चलती है जो गुलाबी रंग की हैं और विशेष बात इन्हें केवल महिलाएँ ही चलाती हैं। उन्हें गुलाबी रंग के गणवेश धारण करने की बाध्यता है। ये सभी महिलाएँ कावेडिया तथा उसके आस पास की निवासी हैं।
भीतर और अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई हैं। 2023 अक्टोबर तक 400करोड़ की आय इस स्थान से सरकार को प्राप्त हुई है।
हमारे देश में अनेक पर्यटन के तथा ऐतिहासिक स्थान हैं अगर सभी जगहें दर्शनीय तथा सुविधा युक्त हो जाएँ तो विदेशी भी बड़ी संख्या में भ्रमण करने आएँगे।
संपूर्ण परिसर में सुव्यवस्था देखकर मन बाग बाग हो उठा।
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