श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 147 – मनोज के दोहे ☆
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मुक्त छंद के काव्य में, सुर- संगीत-अभाव।
दिल को छूता छंद है, स्वर-सरिता की नाव।।
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सब को छप्पर चाहिए, जहाँ करें विश्राम।
श्रम की दौलत से सजे, दरवाजे पर नाम।।
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मानवता कहती यही, होगी युग में भोर।
मुलाकात होती रहे, कुशल-क्षेम पर जोर।।
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मौसम करवट ले रहा, धूप कहीं बरसात।
जहाँ न वर्षा थी कभी, बरसे अब दिन रात।।
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संकट के बादल बढ़े, छिड़ा हुआ है युद्ध।
भारत का प्रस्ताव यह, अब तो पूजो बुद्ध।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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