आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवरात्रि पर्व पर विशेष जागो माँ…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 208 ☆
☆ जागो माँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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जागो माँ! जागो माँ!!
सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है
सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है
जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है
भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है
सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
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जनगण है दीन-हीन, रोटी के लाले हैं
चिड़ियों की रखवाली, बाज मिल सम्हाले हैं
नेता के वसन श्वेत, अंतर्मन काले हैं
सेठों के स्वार्थ भ्रष्ट तंत्र के हवाले हैं
रिश्वत-मँहगाई पर ब्रम्ह अस्त्र दागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
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जन जैसे प्रतिनिधि को औसत ही वेतन हो
मेहनत का मोल मिले, खुश मजूर का मन हो
नेता-अफसर सुत के हाथों में भी गन हो
मेहनत कर सेठ पले, जन नायक सज्जन हो
राजनीति नैतिकता एक साथ पागो माँ
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सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है
सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है
जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है
भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है
सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१८-४-२०१४
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