श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  बाहर वे गा रहे, ज्ञानेश्वरी अभंग…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #251 ☆

☆ बाहर वे गा रहे, ज्ञानेश्वरी अभंग… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

जीवन को जीने के

सुख-दुख को पीने के

सब के होते अपने अलग-अलग ढंग

जिये कोई बाहर, तो कोई अंतरंग।

नंगे भूखे रहकर भी कोई गा लेते

खुशियों को पा लेते

ऐशो-आराम जिन्हें

नहीं कोई काम जिन्हें

फिर भी बेचैन रहे

क्षण भर न चैन रहे

धेला-आना, पाई

रेत में खोजे रांई

जीवन पर्यंत लड़े, जीवन की जंग

जिए कोई बाहर, तो कोई अंतरंग।

ए.सी.कारों में बीमारों से, कर रहे भ्रमण

चालक इनके सरवण

बंद कांच सारे हैं

शंकित बेचारे हैं

ठाठ-बाट भारी है

फिर भी लाचारी है

है फरेब की फसलें

बिगड़ रही है नस्लें

बाहर वे गा रहे, ज्ञानेश्वरी अभंग

जिए कोई बाहर तो कोई अंतरंग।

भुनसारे उठकर जो, देर रात सोते हैं

सपनों को ढोते हैं

खुशमिजाज वे भी हैं

खाने को जो भी है

खा लेते चाव से

सहज हैं स्वभाव से

ज्यादा का लोभ नहीं

खोने का क्षोभ नहीं

चेहरों पर मस्ती का दिखे अलग रंग

जिये कोई बाहर तो कोई अंतरंग।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments