आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है गीत गिनती कर किससे क्या पाया? …।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 209 ☆
☆ गीत – गिनती कर किससे क्या पाया? ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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जो थक-चुका वृद्ध वह ही है
अपना मन अब भी जवान है
अगिन हौसले बहुत जान है…
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जब तक श्वासा, तब तक आशा
पल में तोला, पल में माशा
कटु झट गुटको, बहुत देर तक
मुँह में घुलता रहे बताशा
खुश रहना, खुश रखना जाने
जो वह रवि सम भासमान है
उसका अपना आसमान है…
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छोड़ बड़प्पन बनकर बच्चा
खुद को दे तू खुद ही गच्चा
मिले दिलासा झूठी भी तो
ले सहेज कह जुमला सच्चा
लेट बिछा धरती की चादर
आँख मुँदे गायब जहान है
आँख खुले जग भासमान है…
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गिनती कर किससे क्या पाया?
जोड़ कहाँ क्या लुटा गँवाया?
भुला पहाड़ा संचय का मन
जोड़ा छूटा काम न आया
काम सभी कर फल-इच्छा बिन
भुला समस्या, समाधान है
गहन तिमिर ही नव विज्ञान है
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१.१०.२०२४
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