श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है कविता – यही तो वह संस्कारधानी है…। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 236 ☆
☆ यही तो वह संस्कारधानी है… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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जीवन में कुछ करके जाना
दुख औरों के हर के जाना
पुत्र हो सपूत या हो कपूत
तो अब क्या फिर धर के जाना
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विनोबा भावे ने जिसे मानी है
हां यही तो वह संस्कारधानी है
पर किसी ने कहा गुंडों का शहर
ये बात हमें गलत कर दिखानी है
*
माना कि शहर में अपराध बहुत है
पर धार्मिकता भी अगाध बहुत है
मिल कर मनाते हैं सभी पर्व यहां
लोगों में आपसी सौहार्द बहुत है
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
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