प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “मनुज-मन भावों का एक अनुपम खजाना है…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 200 ☆ मनुज-मन भावों का एक अनुपम खजाना है… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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मनुज भावों कर एक अनुपम खजाना है.
दुर्विचारों से सदा जिसको बचाना है
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सुख-दुखों का स्रोत मन के भाव ही तो हैं-
जिसे सद्भावों से हर दिन खुद सजाना है।
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मन अगर है शांत, संतोषी तो नित सुख है
अगर मैला है तो मैला हर ठिकाना है।
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झलक मन ही उसके सब व्यवहार देते हैं
कठिन होता मनोभावों को छुपाना है।
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प्रेम-पागे भाव सबको सदा भाते हैं।
भले भावों का प्रशंसक यह जमाना है।
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प्रिय कल्पना शुभ भावना ही नित सहेली हैं
दोनों का रिश्ता सतत सदियों पुराना है। ४॥
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈