श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 138 ☆

☆ मुक्तक – ।। किसीके अंधेरे का चिराग बनके देखो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

किसी के अंधेरे  का चिराग बन  कर देखिए।

किसी की आँखों का ख्वाब बन कर  देखिए।।

दर्द दूसरों का  भी    अपना कर   जरा देखो।

किसी   मुश्किल का  जवाब बन  कर देखिए।।

[2]

गिरते हुए को जरा   संभाल कर    देखो  तुम।

अपनी नज़र के  जरा    पार  भी   देखो  तुम।।

हाथ बढ़ाओगे तो  आँसुओं में मुस्कान मिलेगी।

किसी का दर्द  लेकर    जरा उधार देखो तुम।।

[3]

दूसरों के गमों को जो समझें वो इंसान होता है।

तकलीफ में दे  साथ    वही  एहसान  होता है।।

नेकी कर   दरिया  में   डाल देना ही है   जरूरी।

जला कर  हाथ जो बचाए वो भगवान होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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