आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 79 – उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो… ☆ आचार्य भगवत दुबे
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जुर्म है मंजूर मुझको आशिकाना दोस्तो
उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो
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छोड़ना मत, तुम मुहब्बत में वफा की राह को
चाहे, दुनिया का मिले, कोई खजाना दोस्तो
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गहरी, अमृत की लबालब झील-सी आँखें हैं वो
आशिकी की आग, उनमें है बुझाना दोस्तो
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कौन बच पाया है, उन कातिल निगाहों से भला
कब गया है, हुस्न का खाली निशाना दोस्तो
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जान देने को भी, मैं आ जाऊँगा आवाज पर
वार मुझ पर वो करें यदि शायराना दोस्तो
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जश्न, रूमानी गजल के, हों हमारी मौत पर
चाहता हूँ, मौत का जलसा मनाना दोस्तो
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तुम जहाँ चाहो, वहाँ महबूब को आना पड़े
पर इबादत की तरह उसको बुलाना दोस्तो
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© आचार्य भगवत दुबे
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