श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “धूप स्वेटर पहन कर आई…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 79 ☆ धूप स्वेटर पहन कर आई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
हवाओं में
घुल रही ठिठुरन
धूप स्वेटर पहनकर आई।
ओस ने गीला किया
लो फूलों का तन
कँपकँपी के पाँव ने
जकड़ा है तन मन
शिराओं में
दौड़ती सिहरन
धुँध कुहरे को पकड़ लाई।
खेत में फैली ख़ुशी
अँकुराए हैं दिन
मेंड़ कहती कान में
धरती बनी दुल्हन
मचानों पर
बैठ अपनापन
फूँकता है सगुन शहनाई।
नदी बैठी घाट पर
सुड़कती है चाय
रात लेकर चाँद को
कहे टाटा बाय
कुनकुनी सी
सूरज की किरन
चुभ रही काँटे सी पुरवाई।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
११.११.२४
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