डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 257 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆
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बता दिया उसने मुझे, अपने दिल का राज।
कैसे कह दूँ मैं तुम्हें, बन जाओ सरताज।।
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अश्क बहाने क्यों अभी, आए मेरे पास।
दिल तेरा कहने लगा, मैं हूँ तेरी खास।।
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कहते क्यों हो जीवनी, भोर नहीं है रात।
कैसे तुम यह भूलते, होती कितनी बात।।
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समझ गए हो आज तुम, अपनी ही तकदीर।
आए जब से तुम यहाँ, हर ली मेरी पीर।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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