श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में उनकी एक सोचती समझती गिलहरी द्वारा सन्देश देती एक कविता “.. गिलहरी ….. । आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।)
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 41 ☆
☆ .. गिलहरी ….. ☆
एक गिलहरी
आंगन में
आती-जाती,
उछलकर फिर
भाग जाती।
कुछ कहती
कुछ सुनती,
खूब जानती ।
क्यों है खामोशी,
सेल्फी लेना चाहते
तो उचकती भागती,
दाना पानी देखकर
वो समझ जाती।
डरे हुए आदमी पर
दूर खड़ी हंसती,
उछल कूदकर
कुछ सिखा जाती।
© जय प्रकाश पाण्डेय