स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 218 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
क्रमशः आगे…
ओ ययाति
– – – – – – –
ओ ! मूढमति
ययाति
पतित पिता की
संतान
ययाति ।
तुम्हें
तनिक भी लज्जा नहीं आई,
दानदाता का
मिथ्या गौरव सँजोने
तुमने
देह दोहन के निमित्त
–
बेटी को
ढकेल दिया
अंधे कुए में !
तुमने
खूब
भोग भोगा
देवयानी, शर्मिष्ठा
और जाने कितनों के साथ।
तुम्हारी
ज्वलित भोगेच्छा ने
तुम्हें बना दिया
राजा से
भिक्षुक
मांगकर यौवनदान ।
तुमने
कैसे भुला दिया
क्वाँरी
— नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी /
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈