श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “लिखे हुए नारे देखे…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 83 ☆ लिखे हुए नारे देखे… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
हमने तो दीवारों पर
लिखे हुए नारे देखे
लिपटे हुए लँगोटी में
तन भूखे बेचारे देखे ।
सूरज उगता
मंदिर की
सीढ़ी पर गिरती धूप नई
दिन तपता
दिखलाता
झुलसाते मन के रूप कई
झोपड़ियों में
आज तलक
बस धुँधलाते तारे देखे ।
लाचारी में
उफनाते
महंगाई के ज़हरीले नाग
रेंग रहे
उन्माद भरे
उत्पीड़न त्रासद खेलें फाग
तिरस्कार के
फूत्कार से
डँसते अँधियारे देखे ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈