श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना सुखद संदेश। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 224 ☆ सुखद संदेश…

विनम्रता का भाव जीत का आधार बनता है। विकट समस्या भी एक समय के बाद स्वयं हल हो जाती है। जहाँ एक ओर लोग इसे सहजता से स्वीकार करते हैं तो वहीं दूसरी ओर लोग रो पीट कर, थक हार कर इसे ईश्वर की नियति मानकर अपनाते हैं। भाव कोई भी हो वक्त हर मरहम की दवा बन सबको जीने का पाठ पढ़ाता है। जिस वातावरण में हम रहते हैं वहाँ का असर पड़ना स्वाभाविक है, बुद्धिमानी तो इसमें है कि हमें अपनी संगति का सतत ध्यान रखना चाहिए, किसी कीमत पर इससे समझौता न हो। आध्यात्मिक शक्ति हमको जीवन मूल्यों के साथ अपने उद्देश्यों से भी परिचित कराती है इसलिए इसके साथ रहिए…अर्चना, वंदना, भक्ति की शक्ति को अपनी ताकत बना ब्रह्मांड से जुड़ें।

*

करें हम आराधना

नित्य सरस साधना

भेदभाव दूर होवे

प्रार्थना तो कीजिए।

*

वंदना करेंगे सभी

काज पूरे होंगे तभी

मिलजुल कर रहें

शुभाशीष लीजिए। ।

*

कोई न विश्वास दूजा

धर्म कर्म सत्य पूजा

आनन्द में डूबकर

भक्ति रस पीजिए।

*

धार के उम्मीद सारे

प्रेमभाव जो निहारे

ज्ञान भरी ज्योति जले

ये संदेश दीजिए। ।

*

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments