सौ. सुजाता काळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 32 ☆
अब के पतझड़ में
कौन कौन झरेगा?
कौन जाने?
कौन कौन टूटेगा ?
कौन जाने?
शाख से या घर से?
डर से या दर्द से !!
दर से दरबदर होगा
या दर्द से बेदर्द होगा?
बेदर्द इलाज लाएगा
या खुद लाइलाज
बन जाएगा।
अब के पतझड़ में
कौन कौन झरेगा?
कौन जाने?
कौन कौन टूटेगा ?
कौन जाने?
ज़मीं से मिलेगा?
या ज़मीं ही बन जाएगा!!
दरख्त से बिछड़कर
धूल बन जाएगा,
या गर्द में फूल बनकर
डाली पर छा जाएगा!!
अब के पतझड़ में
कौन कौन झरेगा?
कौन जाने?
कौन कौन टूटेगा ?
कौन जाने?
एक राह चलेगा
या बेराह हो जाएगा ?
राह चलते चलते
गुमराह बन जाएगा
या गुमराह बनकर
गुमनाम हो जाएगा।
अब के पतझड़ में
कौन कौन झरेगा?
कौन जाने?
कौन कौन टूटेगा ?
कौन जाने?
फूलों सा बिखरेगा
या पत्ते सा झड़ जाएगा
डाली पर मलूल बनेगा
या सुर्ख हो जाएगा ।
मकाम को पाएगा
या खुद ही मकाम
बन जाएगा ।
अब के पतझड़ में
कौन कौन झरेगा?
कौन जाने?
कौन कौन टूटेगा ?
कौन जाने?
पतझड़ को जाएगा
तो बसंत में आएगा
या पतझड़ का गया
बारिश में आएगा ।
सावन में मिल पाएगा
या खुद सावन
बन जाएगा ।
अब के पतझड़ में
कौन कौन झरेगा?
कौन जाने?
कौन कौन टूटेगा ?
कौन जाने?
26/2/20
© सुजाता काले
पंचगनी, महाराष्ट्रा, मोबाईल 9975577684