श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-९ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

बहमनी और विजयनगर साम्राज्यों की सीमा कृष्णा नदी निर्धारित करती थी। कृष्णा नदी के उत्तरी किनारे तक बहमनी साम्राज्य की सीमा थी और दक्षिणी किनारे से विजयनगर साम्राज्य आरम्भ होता था। कृष्णा नदी पश्चिमी घाट के महाराष्ट्र में महाबलेश्वर पर्वत की कंदराओं से निकलती है। जहाँ पर्यटक अक्सर घूमने जाते हैं। कृष्णा नदी की उपनदियों में कुडाळी, वेण्णा, कोयना, पंचगंगा, दूधगंगा, तुंगभद्रा, घटप्रभा, मलप्रभा, मूसी और भीमा प्रमुख हैं। कृष्णा नदी के किनारे विजयवाड़ा एंव मूसी नदी के किनारे हैदराबाद स्थित है। इसके मुहाने पर बहुत बड़ा डेल्टा है। इसका डेल्टा भारत के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है। कृष्णा महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। कृष्णा नदी 1400 किलोमीटर यात्रा तय करके हर मान सून में उपजाऊ डेल्टा प्रदान करती है। सबसे ऊँचा चिनाई नागार्जुन सागर बांध नरगुण्डा जिले में इसी नदी पर बना है। इस इलाक़े में दुनिया की सबसे तीखी मिर्च की खेती होती है। विजयनगर साम्राज्य की उन्नति से बहमनी साम्राज्य के विखंडन से पैदा हुए चारों मुस्लिम राज्यों को मिर्ची लगती थी।

दिल्ली के तुगलक वंश के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के खिलाफ़ इस्माइल मुख के विद्रोह से बहमनी सल्तनत (1347-1518) अस्तित्व में आया था। इसकी स्थापना 03 अगस्त 1347 को एक तुर्क-अफ़गान सूबेदार अलाउद्दीन बहमन शाह ने की थी। 1518 में इसका विघटन हो गया जिसके फलस्वरूप – गोलकोण्डा, बीजापुर, बीदर, बिरार और अहमदनगर के मुस्लिम राज्यों का उदय हुआ।

हिन्दू विजयनगर साम्राज्य इसका प्रतिद्वंदी था। कृष्णदेवराय ने बहमनी सुल्तान महमूदशाह को बुरी तरह परास्त किया। रायचूड़, गुलबर्गा और बीदर आदि दुर्गों पर विजयनगर की ध्वजा फहराने लगी। किंतु प्राचीन हिंदु राजाओं के आदर्श के अनुसार महमूदशाह को जीता हुआ इलाका लौटा दिया। इस प्रकार कृष्णदेवराय यवन राज्य स्थापनाचार्य की उपाधि धारण की।

तालीकोटा की लड़ाई के समय सदाशिव राय (1542-1570) का शासन चल रहा था। सदाशिव राय विजयनगर साम्राज्य के कठपुतली शासक थे। वास्तविक शक्ति उसके मंत्री राम राय के हाथ में थी।  सदाशिव राय दक्कन की इन सल्तनतों को पूरी तरह से कुचलने की योजना बना रहा था। इन सल्तनतों को विजयनगर के मंसूबे के बारे में पता चल गया। उन्होंने एकजुट होकर लड़ने की योजना बनाई। बीजापुर के अली आदिल शाह प्रथम, गोलकुंडा के इब्राहिम कुली क़ुतुब शाह, अहमदनगर के हुसैन निज़ाम शाह प्रथम और मराठा मुखिया राजा घोरपड़े की संयुक्त सेना ने एकजुट होकर एक गठबंधन का निर्माण कर विजयनगर साम्राज्य पर हमला बोल दिया था। विजयनगर साम्राज्य और दक्कन सल्तनत की सेनाओं के बीच भयानक लड़ाई हुई, जिसे ‘तालिकोटा की लड़ाई’ के नाम से जाना जाता है।

तालिकोटा का मैदान हम्पी से 200 किलोमीटर दूर कृष्णा नदी के किनारे था। कृष्णा  नदी के दक्षिणी किनारे पर राक्षस-तांगड़ी नामक दो गावं के बीच का खुला मैदान तालिकोटा के नाम से प्रसिद्ध है, जहाँ यह लड़ाई हुई थी। सदाशिव राय साम्राज्य के प्रधान थे, उन्होंने तालीकोटा की लड़ाई में विजयनगर साम्राज्य की सेना का नेतृत्व किया था।

15 सितंबर 1564 को दशहरा के दिन राम राय ने दरबार में विचार-विमर्श के पश्चात आदेश दिया कि सभी दरबारी अपनी सेनाओं को लेकर तालीकोटा के मैदान में एकत्रित हों। 26 दिसंबर 1564 को संयुक्त मुस्लिम फ़ौज कृष्णा नदी के उत्तरी किनारे पर पहुँच गईं। दक्षिणी किनारे पर राम राय के सेनापतित्व में विजयनगर सेना उनका इंतज़ार कर रही थी। लड़ाई शुरू होने के पहले नदी पार करने को लेकर छुटपुट भिड़ंत होती रहीं। दोनों सेनाएँ एक महीने तक जासूसों के माध्यम से शक्ति संतुलन तौलती रहीं। निजाम शाह और क़ुतुब शाह ने नदी पार करके हमला करने की कोशिश में मार खाई और वे वैसा खेमे में लौट गए। मुस्लिम सेना ने बदली व्यूह रचना के मुताबिक़ युद्ध भूमि से हटकर दोनों तरफ़ से सशस्त्र घुड़सवार नदी पार करके दक्षिणी किनारे पर उतारे। उन्होंने बिच्छू डंक योजना के मुताबिक़ दोनों तरफ़ से विजयनगर सेना को घेरे में ले लिया।

23 जनवरी 1565 को कृष्णा नदी पर दोनों सेनाओं की भिड़ंत हुई। इतिहासकार स्वेल और फ़रिश्ता के अनुसार राम राय हुसैन निजाम शाह के आमने-सामने था और उनका भाई तिरुमला उनके दाहिनी तरफ़ बीजापुर फ़ौज के सामने, दूसरा भाई वेंकटद्रि अहमदाबाद-बिदर-गोलकुंडा के संयुक्त सेना के सामने से भिड़े। भयानक लड़ाई होने लगी। विजयनगर सेना का पड़ला भारी था। तभी दो घटनाओं में युद्ध का मुख मोड़ दिया। विजयनगर सेना के दो मुस्लिम सेनानायक जिहाद के नारे लगाते हुए, दगा करके मुस्लिम सेना के साथ हो गए। दूसरा, नदी पार करके आए घुड़सवारों ने विजयनगर सेना पर पीछे से घातक हमला कर दिया। विजयनगर की सेना तितर बितर हो गई। सैनिक जान बचा कर भागने लगे।

युद्ध के दौरान राम राय के जिन दो मुस्लिम सेना नायकों ने अचानक पक्ष बदल लिया था और वे मुस्लिम हमलावरों से जा मिले। इन दोनों ने राम राय को पकड़ लिया। निजाम शाह ने तलवार से राम राय का सर काट कर उसे भाले की नोक पर उठाकर युद्ध जीतने की घोषणा कर दी। राम राय का भाई तिरुमला किसी तरह हम्पी पहुँच खजाना और राज स्त्रियों को लेकर दक्षिण की तरफ़ पेनुगोंडा पहुँच राजा बनने की घोषणा कर सेना इकट्ठी करने लगा। लेकिन विजयनगर साम्राज्य इस हार से कभी उभर नहीं सका और धीरे-धीरे पतन की गर्त में चला गया।

क्रमशः… 

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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