श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 116 ☆ देश-परदेश – ठंड बहुत है ☆ श्री राकेश कुमार ☆
इन शब्दों के उपयोग से हम अपनी लेट लतीफी पर पर्दा डालने का कार्य करते हैं। मौसम को हथियार बनाना सब से आसान जो होता हैं।
कुछ दिन पूर्व जयपुर से दिल्ली प्रातः काल टैक्सी से यात्रा करनी थी। जयपुर से जाने वाले वर्तमान में परिचितों के लिए मिठाई के स्थान पर विश्व प्रसिद्ध कचौरी चाहे प्याज,कोटा या दाल वाली को ही प्राथमिकता देते हैं। मेजबान भी मीठे के नाम से परहेज करते हैं।
घर के पास के कचौरी निर्माता को फोन पर जानकारी प्राप्त की कितने बजे कचौरी उपलब्ध हो जाएगी। उसने साढ़े सात पर सभी वैरायटी की गारंटी ली। सुबह जब आठ बजे उसके यहां पहुंचे तो बोला अभी तो आधा घंटा और लगेगा। उसने भी ठंड का हवाला दे कर हमारे गुस्से को ठंडा कर दिया। हमने भी तर्क दिया क्या ठंड अचानक आ गई है ? वो हंसते हुए बोला इतनी देरी तो स्वाभाविक हैं। रात को दुकान बंद करने के समय बहुत देरी हो जाती हैं। आजकल लोग निशाचर हो गए हैं। स्विगी वाले “कचोरीखोरों” को रात्रि ग्यारह बजे तक घर पहुंच सेवा देने में तत्पर रहते हैं। आप जैसे बुजुर्ग ही सुबह सुबह हमारी दुकान पर आकर बहस कर दिमाग खाते हैं।
हमारी समझ में आ गया, इसे अवश्य बस कंडक्टर और सेवानिवृत आई ए एस के थप्पड़/ झगड़े वाली कहानी की जानकारी होगी। हम भी आधे घंटे तक इंतजार कर कचौरी ले कर आ गए। अब ठंड बहुत बढ़ गई, मोबाइल पर उंगलियां नहीं चल रहीं हैं।
© श्री राकेश कुमार
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