श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सपने सोये…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 88 ☆ सपने सोये… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
देहरी रोई
घर आँगन आँचल भीगा
छप्पर छानी तक रोये।
सिंहासन पर
बैठा राजा
जाँच रहा परचे
किसने कितनी
करी कमाई
खुशियों पर खरचे
किस्मत सोई
रातों में काजल भीगा
आँखों में सपने सोये।
डरा डरा सा
हर पल जीता
आशंकित जीवन
कब बँट जाये
गंगा जमुनी
तहजीबों का मन
नफरत बोई
नहीं कहीं बादल भीगा
राहों में काँटे बोये।
शिथिल बाजुओं
पर हैं साधे
शेष अशेष उमर
जीता मरकर
घटनाओं में
घायल पड़ा शहर
पीर निचोई
दर्दों में पल पल भीगा
किसने किसके दुख धोये।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈